Book Title: Samaysara
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 126
________________ परिष्कार करें : लड़ें नहीं मनुष्य कोई ईंट नहीं है, कोई कापी या पेन नहीं है, जिसे एक सांचे में ढालकर हजारों एक जैसे बनाए जा सकें। जड़ वस्तु का निर्माण यन्त्र द्वारा होता है। मनुष्य चेतनावान् प्राणी है। उसका निर्माण यंत्र द्वारा नहीं किया जा सकता। जहां चेतना है, वहां चिन्तन है, स्मति और कल्पना है, कुछ नया करने की भावना है। जहां ये सब होते हैं, वहां एकरूपता का होना कठिन ही नहीं, असंभव है। सामूहिक जीवन के लिए यह एक बड़ी समस्या प्रश्न है रुचि का सबसे पहली समस्या है रुचि का भेद। एक परिवार में दस आदमी एक साथ रहते हैं, उन सबकी अपनी-अपनी रुचि होती है। सब लोगों की रुचि एक समान नहीं होती। एक व्यक्ति कछ चाहता है, दूसरा व्यक्ति कुछ और चाहता है। इसका कारण रुचि-भेद का होना है। मनष्य के भीतर एक रुचि होती है. एक प्रीति और आकर्षण होता है। बहत महत्त्वपर्ण है रुचि का प्रश्न। अधिकांश व्यक्तियों की रुचि का सम्बन्ध एक दिशा से ही जड़ा हआ है। इस संसार में जीने वाले व्यक्ति की रुचि काम-भोग में अधिक है। उसकी सारी रुचियों का केन्द्र-बिन्द यही है। आचार्य कुन्दकुन्द ने इस सचाई को संकेतित करते हुए कहा- काम-भोग से संबंधित बंध की कथा से सब लोग परिचित हैं, उसके प्रति प्रत्येक व्यक्ति की रुचि है लेकिन काम-भोग की कथा से परे जाने की कथा करने वाले विरल हैं। बहत कम लोग ऐसे हैं, जो काम-भोग से परे की चेतना में जीने की बात करते हैं सुदपरिचिदाणुभूदा, सव्वस्स वि कामभोगबंधकहा। एयत्तस्सुवलंभो णवरि ण सुलहो विहत्तस्स।। रुचि भेद की समस्या हम पारिवारिक जीवन को देखें। उसमें जितने रुचि-भेद सामने आते हैं, उनकी पृष्ठभूमि में काम या वासना का भाव प्रबल होता है। रुचि-भेद को लेकर पारिवारिक जीवन में बहुत बार झगड़े हो जाते हैं। एक प्रश्न है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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