Book Title: Samaysara
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 139
________________ 128 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा मनोविज्ञान को समझने के साथ-साथ आत्मविज्ञान की भूमिका तक जाना जरूरी है। धार्मिक की कसौटी प्रश्न है-गांठें कैसे खुले? उसका उपाय क्या है? मार्क्स ने कहा-जहां वर्ग बने हए हैं, वहां संघर्ष अवश्य होंगे क्योंकि सबके अपने-अपने अलग हित होते हैं और उनमें सामंजस्य करना बड़ा कठिन है। जितना स्वार्थ उतनी ही क्रूरता, जितना लोभ, उतनी ही करता। जब करुणा की भावना समाप्त हो जाती है तब करता पनपती है। जिसमें करुणा नहीं है, क्या वह धार्मिक हो सकता है? संवेदना का होना, धार्मिक की पहली कसौटी है। जहां संवेदना को जगाने का प्रश्न है वहां हमारे सामने ध्यान की बात आती है। ध्यान क्यों? ध्यान जरूरी है अतीत के बोझ को हल्का करने के लिए, अतीत के संग्रह को कम करने के लिए, गांठों को खोलने के लिए। यदि हम अतीत के बोझ का अनभव नहीं करते, अतीत के संग्रह का अनुभव नहीं करते तो ध्यान की उपयोगिता हमारी समझ में नहीं आएगी। हम तीन गप्तियों की साधना करें। मनोगप्ति, कायगप्ति और वाक् गप्ति करें तो अतीत के संग्रह का बोझ हमारे सिर पर नहीं टिक पाएगा। ध्यान करने वाले व्यक्ति के मन में मैत्री और करुणा जागती है। ये सब बातें अप्रवृत्ति में से निकली हुई प्रवृत्ति हैं, जो समाज के लिए बहुत कल्याणकारी होती हैं। इन सारे संदर्भो में हम सोचें-ध्यान क्यों? इसका स्वयं समाधान मिलेगा और वह समाधान होगा-जो भीतर में मैल जमा हआ है, उसके रेचन के लिए है ध्यान। गांठों को खोलने के लिए है ध्यान। अतीत का बोझ हल्का करने के लिए है ध्यान। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178