Book Title: Samaysara
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 156
________________ संकलिका | 157 • अहमेदं एदमहं अहमेदस्स म्हि अत्थि मम एदं। अण्णं जं परदव्वं सच्चित्ताचित्तमिस्सं वा।। • आसि मम पव्वमेदं एदस्स अहं पि आसि पव्वं हि। ___ होहिदि पुणो ममेदं एदस्स अहंपि होस्सामि।। • एयं तु असब्भूदं आदवियप्पं करेदि संमूढ़ो भूदत्थं जाणंतो ण करेदि दु तं असंमूढो।। (समयसार - २० - २२) • कारणः प्रत्येक कार्य की पृष्ठभूमि में • अर्थ पर्याय : सहज परिणमन • हिंसा एक कार्य है • कारण है राग • हिंसा क्यों होती है? • राग की उपज है द्वेष • लड़ाई की प्रेरणा है राग • धर्म के लिए भी राग • राग के हेत शरीर, परिवार, धन आदि • मिथ्या अवधारणा • चोट कहां करें • पहला प्रहार राग की जड़ पर • भेद विज्ञान की भूमिका का स्पर्श करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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