Book Title: Samaysara
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 168
________________ आत्मा को कैसे देखें ? देखें पर उसके प्रति राग-द्वेष न करें । न खाना हमारे लिए संभव नहीं है पर यह संभव है जो खाएं, उसके प्रति राग-द्वेष न करें। हम ऐसी साधना करें, जिससे ज्ञान - ज्ञान रहे, उसके साथ जो मोह जुड़ता है, उसे अलग कर दें, उसका पृथक्करण कर दें। इसी का नाम है अंतर्मुखता । इसका तात्पर्य है - इन्द्रियां अपना काम करेगी पर मूर्च्छा साथ में नहीं रहेगी। बड़े शहरों में सीवरेज की व्यवस्था होती है। पानी का नाला और मल का नाला दोनों साथ-साथ चलते हैं। कभी-कभी सीवरेज व्यवस्था गड़बड़ा जाती है, जल और मल का मिश्रण हो जाता है। यह गड़बड़ जन स्वास्थ्य के लिए खतरा बन जाती है। हम जल-मल का मिश्रण न होने दें। जल का नाला अलग चले और मल का नाला अलग चले। इसी का नाम साधना है, ध्यान और अध्यात्म है। इसी के आधार पर हम आत्म-दर्शन की स्थिति में आते हैं - । - — उपभोग करें, राग द्वेष नहीं हम ज्ञाताभाव द्रष्टा भाव की बात करते हैं पर इसका मतलब क्या है ? इसका अर्थ यही है कि हम इन्द्रियों के साथ चेतना को न जोड़ें। मैं खा रहा हूं, फिर भी अरस बना हुआ हूं, मैं देख रहा हूं फिर भी अरूप बना हुआ हूं, इसका नाम है ज्ञाता द्रष्टा भाव। हमारी यह चेतना जागे । अभ्यास के द्वारा इस चेतना को जगाना संभव है । इन्द्रियों को चौबीस घंटे बंद रखना संभव नहीं है। यदि खिड़कियों और दरवाजों को चौबीस घंटे बंद रखेंगे तो प्रकाश कहां से आएगा ? इन्द्रियों की उपलब्धि कर्म के क्षयोपशम से होती है। हम इन्हें बंद क्यों करें। हम वह अभ्यास करें, जिससे हम इन्द्रियों का उपभोग मात्र करें, उसके साथ राग-द्वेष न जुड़े। प्रश्न है अभ्यास कैसे करें ? खाएं और रस न आए, यह कैसे संभव है? क्या इसमें छलना और प्रवंचना नहीं है? अंतर्मुखता की दिशा में प्रस्थान करने वाला व्यक्ति इस स्थिति में पहुंच सकता है। उसके लिए यह स्थिति सहज संभव बन जाती है। 157 Jain Education International मार्ग है अंतर्यात्रा जो व्यक्ति अंतर्मुख होना चाहता है, उसके लिये सबसे पहला प्रयोग है अन्तर्यात्रा का । हम चेतना को नीचे से ऊपर की ओर ले जाएं। जब तक चेतना नाभि के आस-पास घूमेगी, हम ज्ञाता द्रष्टा नहीं बन सकेंगे अरूप और अरस की स्थिति की अनुभूति नहीं कर पाएंगे। अनेक लोग - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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