Book Title: Samaysara
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 170
________________ संकलिका | 17 • जो अप्पणा द मण्णदि दक्खिदसुहिदे करेदि सत्ते ति। सो मूढो अण्णाणी, णाणी एत्तो दु विवरीदो।। • एसा दु जा मदी दे, दुक्खिदसुहिदे करेदि सत्ते ति। एसा दे मूढ़मदी, सुहासुहं बंधदे कम्म।। (समयसार - २५३, २६०) • सुख दुःख का संदर्भ • सम्यग् आचरण का आधार • मिथ्या दृष्टिकोण दूसरा दुःखी या सुखी बनाता है। • सम्यग् दृष्टिकोण सुख दुःख का कर्ता मैं स्वयं हूं • दुःख का मूल है चंचलता • चंचलता से जुड़ी स्थितियां दुःख दौर्मनस्य अंगमेजयत्व श्वास-प्रश्वास • दुःख की स्थिति : दुःख का अनुभव • ध्यान का प्रयोग क्यों? • स्वदर्शन का अर्थ : अपने भाग्य की डोर अपने हाथ में थाम लेना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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