Book Title: Samaysara
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 154
________________ वृत्ति परिष्कार का दृष्टिकोण 143 सकता है लेकिन किसी का जीना या मरना उसके आयुष्य पर निर्भर है। प्रश्न है उपादान का। उपादान बदला या नहीं बदला? यदि उपादान नहीं बदला तो जिलाने से क्या होगा? मारने से क्या होगा? हम निमित्त के आधार पर ही सारे निष्कर्ष न निकालें। यदि हम उपादान पर ध्यान नहीं देंगे तो वृत्ति परिष्कार की बात कभी भी समझ में नहीं आएगी। वत्तियों को बदलने के लिए उपादान को बदलना जरूरी है। जहां मच्छा पैदा हो रही है, राग, द्वेष, मोह और लोभ पैदा हो रहे हैं, वहां ध्यान केन्द्रित करना होगा। महावीर ने मनि के लिए विधान किया-वह न जीने की आशंसा करे, न मरने की आशंसा करे, न मौत से डरे। जब तक जीवन की आशंसा नहीं मिटेगी, मौत का भय नहीं मिटेगा तब तक वृत्ति परिवर्तन की बात साकार नहीं होगी। वृत्ति परिष्कार का सूत्र वृत्ति परिवर्तन के लिए आशंसा के चक्र को तोड़ना जरूरी है। ध्यान करने का अर्थ क्या है? क्या श्वास को देखना है? शरीर को देखना है? श्वास और शरीर एक आलम्बन है। ध्यान में देखना यह है कि हमारी पूरी चेतना श्वास पर लगी रहे, न राग का विकल्प आए, न द्वेष का विकल्प आए। राग और द्वेष के विकल्पों से बचने के लिए श्वास का आलम्बन लिया जाता है। जब तक राग और द्वेष का विकल्प नहीं बदलेगा तब तक वृत्तियां नहीं बदलेंगी। प्रेक्षा का मतलब यही है--हमारी चेतना केवल शुद्ध आलम्बन पर टिके, उसके साथ राग द्वेष का कोई विकल्प नहीं उठे। प्रेक्षा करने का अर्थ है-हमने वृत्तियों की जड़ पर प्रहार करना शुरू कर दिया है। जब उन्हें पोषण मिलना बंद हो जाता है तब वे कब तक टिक सकती हैं? वृत्तियों के परिवर्तन और परिष्कार का सूत्र है राग द्वेष के उपादान से मुक्त रहकर जीना। इतनी सी बात समझ में आ जाए तो वृत्ति परिष्कार का सूत्र हमारे हाथ में आ जाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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