Book Title: Samaysara
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 162
________________ हिंसा का मूल क्या है? 151 त्याग करो। यही साधना का पहला सूत्र है। जब महावीर दीक्षित हुए तब उन्होंने संकल्प लिया - मैं सिद्धों को नमस्कार कर आज से सर्व सावद्ययोग का प्रत्याख्यान करता है। महावीर ने संकल्प लिया - मैं शरीर का व्युत्सर्ग करके, त्याग करके विहार करूंगा। कायोत्सर्ग से साधना शुरू हुई और कायोत्सर्ग में ही साधना समाप्त हुई। जहां कायोत्सर्ग है वहां राग की जड़ कमजोर हो जाएगी। जब तक हम इस बात को नहीं समझेंगे तब तक न व्रत की बात समझ में आएगी, न अध्यात्म और धर्म की बात समझ में आ सकेगी। जब तक शरीर का मोह, परिवार का मोह और रागात्मक भाव है तब तक अनैतिकता, भ्रष्टाचार आदि प्रवृत्तियां कभी समाप्त नहीं होंगी। राग पर चोट करें हम इस सचाई को पकड़े-कायोत्सर्ग किए बिना मूल जड़ पर प्रहार नहीं होगा। कायोत्सर्ग करने वाले एवं कराने वाले व्यक्ति को यह ध्यान रखना चाहिए - कायोत्सर्ग केवल शिथिलता तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि वह भेद विज्ञान की भूमिका का स्पर्श करे। उस स्थिति में ही राग पर चोट होगी। जब राग पर चोट होनी शरू होगी तब कायोत्सर्ग बढ़ेगा। उसकी निष्पत्ति होगी - हम अपने पोषण के लिए दूसरे का शोषण नहीं कर सकेंगे, किसी का गला नहीं घोट सकेंगे। प्रेक्षाध्यान जीवन का दर्शन है, आध्यात्मिक साधना की प्रक्रिया है। आध्यात्म शुरू होता है कायोत्सर्ग से। कायोत्सर्ग पर विशेष ध्यान देकर ही हम मूल कारण को पकड़ सकेंगे। जब काया से उपजने वाला राग कम होने लगेगा,समस्याओं का समाधान स्वत:मिल जाएगा।यह रागभाव ज्यों-ज्यों कम होगा, चेतना का रूपान्तरण होता चला जाएगा, इन सारी बाइयों का उद्भव असंभव हो जाएगा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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