Book Title: Samaysara
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 129
________________ 118 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा चेतना जागृत है, वह विचार-भेद के कारण किसी को विरोधी नहीं मानेगा। असहिष्णुता का युग सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन का महत्त्वपूर्ण सूत्र है- सहिष्णुता। यदि सहिष्णुता है तो रुचि-भेद को सहा जाएगा, उसका परिष्कार किया जाएगा किन्तु उसके कारण शत्रता का भाव पैदा नहीं होगा। यदि सहिष्णुता की चेतना जागृत है तो विचार भेद को भी सह लिया जाएगा। शान्त सहवास का सफल सूत्र है सहिष्णुता। वर्तमान युग की सबसे बड़ी समस्या है असहिष्णता। आज के युग को एक शब्द में परिभाषित किया जाए तो यह है असहिष्णुता का युग। व्यक्ति सहना जानता ही नहीं है। क्या अतीत में कभी ऐसा हआ है कि एक विद्यार्थी अध्यापक को पीटे? आचार्य या प्रिंसिपल का घेराव कर उसे कमरे में बन्द कर दे? क्या इतिहास में कहीं ऐसा प्रसंग आया है? अतीत में ऐसा कुछ नहीं होता था किन्तु वर्तमान में सब कुछ हो रहा है। उस समय ऐसे संस्कार थे- गुरु को सहन करोगे तो विद्या बढ़ेगी। यह धारणा थी- विद्या ददाति विनयम्। आज स्थिति यह है- यदि मन के प्रतिकूल पेपर भी आ जाता है तो विद्यार्थी शिक्षक की पिटाई कर देते हैं। बदल गई है जीवन प्रणाली युग कितना बदल गया! यदि हम इस बदले हुए युग में केवल लड़ने की ही बात करें तो समाज का भला नहीं होगा। हमें परिष्कार का सूत्र अपनाना होगा या कोई नया मार्ग खोजना होगा। हम यह नहीं कहतेआज का विद्यार्थी बहत बरा हो गया है लेकिन यह अवश्य कहा जा सकता है कि आज विद्यार्थी को प्रारम्भ से ही अच्छे संस्कार नहीं दिए जा रहे हैं। जीवन की सारी प्रणाली बदल गई है। ऐसा लगता है- विद्यार्थी को शरू से ही उइंडता के संस्कार दिए जा रहे हैं। उन्हें बार-बार उदंडता और उच्छंखलता के स्वर ही सुनाई देते हैं और जब प्रसंग आता है तब वे उन्हीं का उपयोग कर लेते हैं। यदि रुचि-परिष्कार की बात, मस्तिष्कीय प्रशिक्षण की बात प्रारम्भ से ही चले तो आदमी इतना असहिष्ण न बने, उसमें सहिष्णुता की चेतना जाग जाए। प्रश्न है उद्देश्य का सहिष्णुता का विकास सम्भव है किन्तु वह सम्भव बनता है प्रशिक्षण के द्वारा। सहिष्णता के विकास का एक साधन है- कायसिद्धि। यदि हम आसन आदि के द्वारा शरीर को साधने का प्रशिक्षण लें तो असहिष्णता की समस्या से बच सकते हैं। एक बच्चा असहिष्णु है, इसका कारण वह ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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