Book Title: Sajjanachittvallabh
Author(s): Mallishenacharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 37
________________ । Ammanderer' Rozaar सज्जननिसवल्लभ wwwxowa भावार्थ:___ मनुष्य पर्याय की प्रामि होजा अतिशय कठिन है। अतिशय शुभकर्म का उदय इस पर्याय की प्राप्ति का हेतु है। मनुष्य के पास पर्याप्त शारीरिक बल है. मस्तिष्क की अद्भुत विभूति है. समस्त साधनसामग्री को या तो उसे प्रकृति ने प्रदान कर दिया है या मनुष्य ने अपने पुरुषार्थ से प्राप्त | कर लिया है। मनुष्य के पास पाप और पुण्य करने की पूर्ण सामर्थ्य है तथा दोनों का विनाश करके मोक्ष प्राप्त करने की क्षमता भी । प्रत्येक क्षण आ रहा है और जा रहा है । एक समय ऐसा आयेगा कि आयुकर्म का यह कच्चा धागा टूट जायेगा और मनुष्य को शरीर का पिंजरा छोडना पड़ेगा । अमूल्य पर्याय व्यर्थ में ही नष्ट हो जायेगी । ग्रंथकर्ता समझाते हैं कि - आधा आयुष्य निद्रा में व्यतीत हो जाता है। शेष आधी आयु बालपन, वृद्धावस्था और व्यसनों में व्यतीत हो जाती है । यदि तुम चाहते हो कि यह आयु सफल हो जाये तो मोह रूपी |पाश को ज्ञान रूपी तलवार से छेद दो । मोक्षलक्ष्मी को वश में करने के लिए चारित्र का आचरण करो । परीवह सहन करना चाहिये यत्काले लघुपात्रमण्डितकरो भूत्वा परेषां गृहे, भिक्षार्थं भ्रमसे तदा हि भवतो मानापमानेन किम् । भिक्षो तापसवृत्तितः कदशनात् किं तप्यसेऽहर्निशम्, श्रेयार्थं किल सह्यते मुनिवरैर्बाधा क्षुधाधुद्भवाः ||१७|| अन्वयार्थ : (भिक्षो!) हे साधो ! (यत्काले) जिससमय (लघुपात्रमण्डि तकरो भूत्वा) हाथ को छोटा-सा पात्र बनाकर (परेषां गहे) दसरों के घर (मिक्षार्थ भमसे) भिक्षा के लिए भ्रमण करते हो (तदा हि) तब (भवतः) आपको (मानापमान किम) वटा मान और क्या अपमान ? (अहर्निशम्) दिन-रात (तापसवृत्तितः) तापस-वृत्ति से (कदशनात्) अनिष्ट भोजन से (किं तप्यसे) क्यों दुःखी होते हो ? (मुनिवरैः) श्रेष्ठ मुनिजन (किल) निश्चय से (श्रेयार्थम्) श्रेय के लिए (शुधधुशवा WR ३१PORTRA

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