Book Title: Sajjanachittvallabh
Author(s): Mallishenacharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 41
________________ सज्जनवित्तबालभ ललललललल १. समाचार :- महावतों का जिहोंष पालन समाचार है । 1. सम्माचार . - मूलोत्तगुणों का परिपालन जिरतित्तार करना । 1. सम्मानाचार :- विनयात्तार पूर्वक अपने क्रियानुष्ठान करना । .. सम्यक् आचार : - लोक व आगम के अनुकूल आचरण करना । आशय यह है कि मुनिराज को अपने पद के अनुकूल कार्य करने चाहिये। शरीर से निर्ममत्व रहने की प्रेरणा क्रीतान्नं भवता भवेत् कदशनं रोषस्तदाश्लाघ्यते, भिक्षायां यदवाप्यते यतिजनैस्तद्भुज्यतेऽत्यादरात्। भिक्षो भाट कसद्मसन्निभतनोः पुष्टिं वृथा मा कृथाः, पूणे किं दिवसावधौ क्षणमपि स्थातुं यमो दास्यति॥१९॥ MAMI . अन्वयार्थ : (कदशनम्) अरुचिकर भोजन (भवता) यदि आपके द्वारा (क्रीतान्नं भवेत्) खरीदा हुआ हो (तदा) तब (रोषः) क्रोध करना (श्लाघ्यते) प्रशंसनीय है। (भिक्षायाम्) भिक्षा में (अति-आदरात) अत्यन्त आदर से (यत् अताप्यते) जो प्राप्त होता है (यतिजनैः) यतिगण (तद् भुज्यते) उसे खाते हैं। (भियो।) हे भिक्षुक ! (भाट क सदम सन्निम) किराये के मकान के समान (तनोः) इस शरीर की (वृथा) व्यर्थ में ही (पुष्टि' मा कृथाः) पुष्टि मत करो । (दिवसावधौ पूर्णे) आयु की अवधि पूर्ण हो जाने पर (किम्) क्या (क्षणमपि) क्षण भर भी (यमो) रामराज (स्थातुं दास्यति) हरने देगा ? अर्थात् ठहरने नहीं देगा। अर्थ: यदि अरुचिकर भोजन आपके द्वारा क्रीत हो अर्थात् खरीदा हुआ हो तब आपका क्रोध करना भी प्रशंसनीय हो सकता है । भिक्षा में अति आदर से जो प्राप्त होता है , यतिजन उसे खाते हैं। किराये में लिये हुए घर के समान यह शरीर है। इसे वृथा ही पुष्ट मत करो | आयुष्य की र ३५RROWORDI.

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