Book Title: Sajjanachittvallabh
Author(s): Mallishenacharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 54
________________ www मनचित्तबालभ खलल विषय रूपी वन में (सततम्) हमेशा (समट तः) परिश्रमण करने से (रुन्धन्तु) रोकते हैं . अर्थ: आचार्य श्री मन्निषेण जी द्वारा कथित चौबीस छन्दों वाला सच्चे लक्षणों से युक्त यह सजनविमल लामक : है. लो सुतः विद्वान् लोग अपने इन्द्रिय रूपी हाथियों को, जो कि विषय वन में| निरंतर घूम रहे हैं, जिनको रोकना कठिन है. उनको रोकें। भावार्थ:-- यह सम्बोधनप्रधान ग्रन्थ है । इस में उपसंहार पद्य को छोडकर चौबीस पद्य हैं । इस गन्थ का नाम सनचित्तवल्लभ है और इसके लेखक आचार्य श्री मल्लिषेण जी हैं। इस लान्थ के पठन-पाठन करने से जो इन्द्रिय रूपी हाथी अत्यन्त डुर्जय है तथा जो विषय रूपी अट वी में सतत परिभ्रमण कर रहा है वह इन्द्रिय रूपी मातंग भी वशवर्ती हो जाता है। इसीलिए इस ग्रन्थ को सुनकर बुद्धिमाज पुरुष को इन्द्रिय रूपी गज को वश में करने का प्रयत्न करना चाहिये । इति सज्जनचित्तवल्लभनामा ग्रन्थं समाप्तम्। इसप्रकार सज्जनचित्तवल्लभ नामक ग्रन्थ पूर्ण हुआ। - ___ माँ जिनवाणी के भव्य प्राणियों पर असीम उपकार हैं। उसी की अनुकम्पा है कि भव्यजीव इस अपार संसार में आधिव्याधि और उपाधिजनीत दुःखों को सदा-सर्वदा के लिए विनष्ट करके अक्षय सौख्य के आलय को प्राप्त कर लेता है। ऐसी भव्योद्धारिणी माता के चरणों में शत-शत वन्दन। मुनि सुविधिसागर -

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