Book Title: Sajjanachittvallabh
Author(s): Mallishenacharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 44
________________ एक मज्जनचित्तल कारवत्) बकरी के कण्ठ में लगे हुए स्तन के समान (निरर्थकं गतम्) निर्थक हो जाता है । अर्थ : अर्थ को प्राप्त करके भी जो धर्मकार्य में नहीं देते हैं, जो दरिद्रता से उपहत ( युक्त ) होते हुए भी विषयासक्ति नहीं छोड़ते हैं, जो जिनेन्द्र के द्वारा प्ररूपित धर्म को प्राप्त करके भी उसमें सदैव अनादर भाव रखते हैं उनका जन्म बकरी के गले में लगे हुए स्तन के समान निरर्थक हैं । भावार्थ: संसार में तीन तरह के मनुष्यों का जन्म निरर्थक हो जाता है। १. जिनके पास प्रचुरमात्रा में सम्पदा है, परन्तु उसका उपयोग धर्म कार्य और पात्रदान के लिए नहीं होता है । उनके पास धन का होना या नहीं होना समान ही है। पूर्वकृत् पुण्यकर्म का उदय होने पर धन का लाभ होता है। धन एक साधन है। उसके द्वारा पुण्य अथवा पाप का | अर्जन किया जा सकता है। विषयभोगों के लिए व्यय हुआ धन पायों का सृजक हैं और धर्मकार्य तथा पात्रदान में लगा हुआ धन पुण्य रूपी कल्पवृक्ष की वृद्धि करता है। इस संसार में धन को प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है। जिनके पास धन हो, उनमें दान की भावना उत्पन्न होजा उससे भी कठिन है। दान करने की इच्छा हो और सत्पात्र का समागम हो जाये यह संयोग तो महादुर्लभ है। जिन जीवों को ऐसे अवसर प्राप्त होते हैं और फिर भी वे दानधर्म में प्रवृत्ति न करें तो उनका धन व्यर्थ ही है । ३. कुछ लोग अपने स्वोपार्जित पापोदय से निर्धन अवस्था को प्राप्त होते हैं। उन जीवों के पास अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कराने वाले साधन भी नहीं होते हैं। दरिद्रता उनके ओज, तेज, प्रभाव आदिक समस्त गुणों का हरण कर लेती है। उनके पास परिजन और मित्रजनों का भी अभाव होता है । वे फटे हुए और मैले हुए वस्त्रों को पहनने के लिए विवश होते हैं। उनका जीवन दूसरों की किंकरता को करते-करते ही समाप्त हो जाता है। सारे तत्वविद् कहते हैं कि दरिद्रता से बढ़कर कोई दुःख नहीं है। दरिद्र व्यक्ति के पास शरीर रूपी धन है। उस धन के द्वारा वह धर्म करके पुण्यार्जन कर सकता है। यदि दरिद्र मनुष्य अपनी ३८

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