Book Title: Sajjanachittvallabh
Author(s): Mallishenacharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 47
________________ O tutafahamu बद्धि और बद्धिमानो को समाजम दलभ है । उत्त सब का संयोग परत होने पर भी सत्यदर्शन बी पप्ले होगा तथा सम्यक्षाल कानाभ होजा कठिन है। उन दोनों के प्राप्त होने पर भी चारित्र की प्राति भजनीर है अर्थात हो अथवा न भी हो । जिनको चारित्र की प्राप्ति हो गयी, उनका जीवन इस संसार में अतिशय धन्य है। आचार्य भगवन्त मुनियों को सम्बोधित कर रहे हैं कि - हे मुने ! दुर्लभ से दुर्लभ चारित्ररत्न की प्राशि तुम्हें हुई है । उसको प्राप्त करके अर्थलाभ के लोभ में उसे व्यर्थ मत करो । उगे टारित्र मोक्ष दे सकता है. शाश्वतसुख को प्रदान कर सकता है. उससे तुच्छ वैभव की चाहना करना बुद्धिमत्ता नहीं है । यदि आप चारित्र को प्राप्त करके भी लोभ को धारण कर रहे हो तो ठीक वैसा ही होगा जैसे कोई नाविक रत्नों से भरे हुए गाल को डूबाने का प्रयत्न कर रहा हो । अतः आपको चारित्र की सुरक्षा निस्पृह होकर करनी चाहिये । स्त्री संगति का निषेध वेतालाकृतिमददग्धमृतकं दृष्ट्वा भवन्तं यते, यासां नास्ति भयं त्वया सममहो जल्पन्ति तास्तत्पुनः। राक्षस्यो भुवने भवन्ति वनिता मामागता भक्षितुं , मत्वैवं प्रपलाप्यतांमृतिभया त्वंतत्रमा स्थाःक्षणम्॥२२॥ अन्वयार्थ : (वेतालाकृतिम् ) वेताल की आकृति वाले (अर्थदग्धमृतकम्) जिले मूढे के समान (भवन्तम) आपको (दृष्ट्वा ) देवकर (यासाम्) जिनको (भयं नास्ति) भर नहीं है (अहो!) अरे ! (त्वया सह) तुम्हारे साथ (तद् जल्पन्ति) ले बोलती हैं (लाः वनिताः) वे स्त्रियाँ (भुवने) इस संसार में (राक्षस्यो भवन्ति) राक्षसी हैं । (माम्) मुझे (भक्षितुं आगता) खाने के लिए आयी हैं (एवं मत्वा) ऐसा मानकर (मृति भयात्) मरण के भय से (प्रपलाप्यताम्) शीट भाग जाओ (त्वम्) तुम । (तत्र) वहाँ पर (क्षणं गा स्थाः ) क्षाय भर भी मत त हरो। MORE४१ लाहाछ

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