Book Title: Sajjan Chittavallabh Satik
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Nathuram Munshi

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Page 11
________________ A श्रीसजनचिनवल्लभ सटीक। ११ स्नानविलेपन करते और नानाप्रकार के सरम भीजन कर वस्त्राभू पणास अलंकृत रहतेह स्त्रियों के चित्तको तो सो पुम्प प्यारे होत तू क्यों मन चन्नाकर ब्रह्मचर्य रत्न को नाश करता ॥ ७॥ अङ्गंशोणितशुक्र सम्भवमिद दोस्थिमज्जाकुलम् बाहोमाक्षिका सन्निभमहोचावृतंसर्वतः । नोचे काकनकादि भिवपुरहो जाशेतम क्ष्यंध्रुवं दृष्ट्वाचापिशरीरसनननिकथं निवेगतानास्तिते ॥८॥ भापाटीका ॥ इस शरीर रूपघर सेतृ उदास नहीं होता सोबड़ा आश्चर्यहे कैसाहे यहशरीर माताके मधिर और पि. ताके वीर्यसे तो उत्पन्न भयाहे और मेद हाइ मन्नाके समूह सेभरा महा अपवित्र है फिर कैसाह यह शरी. र बाहरसे मकवी के पंखके समान पतली खालाले महा हे यदिसर्व ओर लेमढ़ा नहोता तो रक्त मांस कोदव कर हिंसक मांस मची पत्नी काग बगुला भादिइने । - -

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