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१० श्रीसज्जनचित्तवल्लभ सटीक। । नागोजनंशय्यास्थण्डिलभूमिपुत्र तिदिनंकट्यांनतेकपटम् । मुण्डंमु ण्डितमर्द्धदग्धशववत्त्वंदृश्यतेभोज नैःसाधोद्याप्यवलाजनस्यभवतोगो ठीकथंरोचते ॥ ७॥
. ॥ भाषाटीका ॥ हे साधु तेरे मुखमें दुर्गंध आती है कारण की तूने दतधोवन (दांतोन) का त्याग किया है। और शरीर | रज से मैला होरहा है। क्योंकि स्नान करनेका भी त्याग कियाहै। और पराये गृहमें भिक्षा भोजन करता है। कारण कि आरंभ परिग्रहकात्यागीहै । और कठोर कंकरीली भमिपर नित्य सोताहै क्योंकि पलंग विस्तर का त्यागी है और कटि में कोपीनतक नहींहै कारण कि सर्व प्रकारके वस्त्रोंका त्याग कियाहै इससे लोगों की दृष्टि में अधजले मुर्दैकी तुल्य भयंकररूप दृष्टि | पड़ता है सो अब भी तू स्त्रीजनोंके साथ बचनालाप | करनेके लिये मनको लुभाता है सो क्यों मन भ्रमाता| है देख!जोपुरुष पानादि सुगंधित पदार्थखाते नित्य