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श्रीसज्जनचित्तबल्लभ सटीक 1
धिक राग मतकर यही तेरेलिये परम शिक्षा है ॥ १९ ॥ लब्ध्वार्थयदिधर्म्मदानविषयेदातुं नयैः शक्यते दारिद्रोपहतास्तथापि विषयासक्तिनमुञ्चन्तिये । धृत्वाये चरणं जिनेंद्रगदितंतस्मिन्सदानाद रास्तेषां जन्म निरर्थकं गतमजाकण्ठे स्तनाकारवत ॥ २० ॥
॥ भाषाटीका ॥
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जो मनुष्य धनको पाकरे दान पुण्य में नहीं लगा ते हैं: रात्रि दिन फिर भी कमाई २ में मरते पचते हैं ऐसे सूमों का जन्म तथा जो निर्धन हैं जिनके रहनेको टूटी झोंपड़ी है पहिरने को फटे मैले वस्त्र किंचिन्मामाटी के बर्तनों में कुसमय शाक भांजी से पेट भरते
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हैं, तोभी विषय बासना को नहीं छोड़ते न सच्चारित्र को ग्रहण करते हैं । और जो भगवत प्राणी चारित्रको ग्रहणकर उसमें सदा अनादरसे वर्तते है उस चारित्र मैं शिथिल रहते हैं तिन सबका मनुष्य जन्म बकरी के गले के स्तन समान निकाम है व्यर्थ है ॥ २० ॥ ॥