Book Title: Sajjan Chittavallabh Satik
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Nathuram Munshi

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Page 28
________________ २८ श्रीसज्जनचित्तवल्लम सटीक । इसमें तेरी महाहानि होगी अर्थात् संगसे निकाला जायगा. तप से भ्रष्ट हो लोक निंद्य होगा ॥ २३ ॥ किंसंसकारशतेन विट्जगतिभोः काश्मीरजंजायते किंदेहःशुचितांब जेदनुदिनप्रक्षालनादम्भसा|संस्का रोनखदन्तवक्रवपुषां साधोत्त्वयायु ज्यतेनाकामीकिलमण्डनप्रियइति त्वंसार्थकमाकृथाः ॥ २४॥ ....... ॥ भाषाटीका ॥ हेमुनि क्या सौ.१००संस्कारों से भी संसार में विष्टा (भल ) केसर हो सकता है ? अर्थात् मेले में सैकड़ों सुगंधित वस्तुयें मिलाने से भी केसरके गुणों को (रंग गंध स्वादादि को वह नहीं पहुंच सकता । तैसेही शरीरभी प्रतिदिन के स्नानसेक्या शुद्ध होसकताहै! | अर्थात् नहीं होसकता है. स्नानसे किंचित कालको | ऊपरी देहका मल धुलही गया तो भीतर से मलमूत्र पसीना आदि उसे शीग्रही फिर मैलाकरदेतेहैं। और अंतरंग में कुटिल भाव जनित.जी.पापरूपमल.भरा

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