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श्रीसजनचित्तवल्लभ सटीक। १३ का कारण होगी। क्योंकि यहकेसर चंदनादि का सं. स्कार शरीरकी दुर्गंधता को प्रगट करताहै । भावार्थ केसर चंदन श्रादि सुगन्धित पदार्थ शरीरसे लगते | ही दुर्गंधित होजाते हैं इससे शरीर प्रगट पने मलि न दुर्गंधित और अपवित्र समझो ॥६॥ स्त्रीणांभावविलासविभ्रमगतिदृष्य नुरागमना ग्मागास्त्वविपवृक्षपक्व फलवत्सुस्वादवन्त्यस्तदा । ईपत्से वनमात्रतोपिमरणं पुंसांप्रयच्छन्ति भोः तस्मादृष्टिविपाहिवत्परिहरत्वं दूरतोमृत्यवे ॥१०॥
भाष टीका।। हे मुनि स्त्रियोंकी भावबिलास विश्रम गतिको (ना. नाप्रकारके बहानों पे अंगदिखानामटकाना मुसक्याना सेनचलाना, गाना प्रेमदिवाना, अनेकभानि चेष्टा करना इत्यादि चालको) देखकर तूतनक भी अपने मनमें अनुराग (प्रेम) मतकर । कसीह येत्रियां । विपरन के पक्के फलवत सुन्दर स्वादवाली हैं। और