Book Title: Safal Hona Hai to Ek Tir Kafi Hai
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 78
________________ सदा यह प्रार्थना कीजिए कि हे प्रभु, तू मुझे सदा इतना समर्थ बनाए रखना कि इन हाथों से औरों की सेवा और सत्कार होता रहे। हम पाते वही हैं जैसा हम औरों को देते हैं । बेहतर फल पाने के लिए कभी किसी को सड़ियल धान मत दीजिए । किसी को अपनी जूठन खिलाकर अपने लिए जूठन के बीज मत बोइए । घर के लिए जब भी गेहूँ खरीदें तो एक बोरी गेहूँ ज़्यादा खरीदिए, उनके लिए जो आपके घर बिन बुलाए मेहमान हो जाते हैं। याद रखिए ऐसे मेहमानों को प्रेमपूर्वक भोजन करवाने से घर का दारिद्र्य कम होता है । हर रोज इतना धर्म ज़रूर कीजिए कि आटा भिगोते समय दो मुट्ठी आटा अधिक भिगोएं ताकि मूक पशुओं को भी हमारे घर से चार रोटी रोज खिलाई जा सके और दुकान खोलते ही दस रुपए अलग से निकाल लीजिए ताकि घर या दुकान पर आया कोई याचक खाली हाथ न लौटे। दुनिया में आखिर पुण्याई ही हर समृद्धि और सफलता का आधार हुआ करती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only 77 www.jainelibrary.org

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