Book Title: Rayansar
Author(s): Kundkundacharya, Syadvatvati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ ग्यणसार अर्थ-जो जीव पूर्वकाल में जिनेन्द्र देव के द्वारा, प्रतिपादित, गणधरों के द्वारा विस्तार से बताये गये और जो पूर्वाचार्यों के क्रम पूर्वाचार्यों की परम्परा से प्राप्त हुआ है उसको ज्यों का त्यों यथास्थित, वास्तविक सत्य प्रतिपादन करता है, कहता है, वास्तव में, निश्चय से वहो सम्यग्दृष्टि है। मिथ्यादृष्टि कौन ? मदि-सुद-णाण-वलेण दु, सच्छंद बॉल्लई जिणुद्दिष्टुं । जो सो होइ कुदिहि, ण होइ जिण-मग्ग-लग्गरवो ।।३।। ___ अन्वयार्थ ( जो ) जो जीव ( जिणुद्दिष्टुं ) जिनेन्द्र देव कथित तत्त्व को ( मदि-सुदणाण-बलेण दु ) मति और श्रुतज्ञान के बल से { सच्छंदं ) स्वेच्छानुसार/स्वच्छन्द ( बॉल्लई ) बोलता है ( सो ) वह ( कुदिट्टि ) मिथ्यादृष्टि ( होइ ) होता है वह ( जिण-मम्ग-लग्गरवो) जिन मार्ग में संलग्न जीव का वचन ( ए ) नहीं ( होइ ) होता है । अर्थ-जो जीव जिनेन्द्र देव द्वारा कथित वस्तु तत्त्व को मति-श्रुतज्ञान के बल से स्वेच्छानुसार/स्वच्छन्द रूप से बोलता है, वह व्यक्ति मिथ्याष्टि है । उसका वह वचन जिनमार्ग में अनुरक्त व्यक्ति का वचन नहीं है। मोक्ष का मूल सम्मत्त-रयणसारं, मोक्ख-महारुक्ख-मूलमिदि भणियं । तं जाणिज्जइ णिच्छय-ववहार-सरूवदो भेयं ।।४।। ___ अन्वयार्थ—(मोक्ख-महारुक्खमूलं) मोक्षरूपी महावृक्ष का मूल (सम्मत्त-रयणसारं) सम्यक्त्व रत्न ही सारभूत है (इदि) ऐसा (भणियं) कहा गया है (तं) वह (णिच्छय-ववहार-सरूवदो) निश्चय और व्यवहार रूप से [ दो ] (भयं) भेद वाला (जाणिज्जइ) जानना चाहिये । ____ अर्थ—मोक्षरूपी महावृक्ष का मूल सम्यग्दर्शन, इस प्रकार कहा गया है । वह सम्यग्दर्शन, निश्चय सम्यग्दर्शन और व्यवहार सम्यग्दर्शन रूप से दो दी वाला जाना जाता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 142