Book Title: Ranpingal Part 01 Author(s): Ranchodbhai Udayram Publisher: Kutchh Darbari Mudrayantra View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना. सर्व विद्याओगें मूळ वेद छे. एज प्रगाणे आ छंदःशास्त्रन कथन पण वेदमां छे. ऋषिओ तने वेद- अंग मानेछे, अने तेना विराट स्वरूपमा वे पादं स्थळे तेनी गणना करेछे. जेमके, (सविणीवृत्त) शब्दशास्त्रं मुखं ज्योतिपं चक्षु श्रावमुक्तं निरुक्तं च कल्पः व या तु शिक्षास्य वेदस्य सा नासि पादपद्मद्वयं छंद आयेवुधैः. व्याकरण वेदनुं मुख छे, ज्योतिष नेत्र छे, निरुक्त कान छ, का हाथ छे, शिक्षा नाक छे, अने छंदस्, ते चरण कमळ छे, एम प्राचीन विद्वानोए कहेलुछे, अने पाद विनानो मनुष्य जेम लंगडो गणायछे, सेम वेद पण छंदःशास्त्र विना पांगको मनायछे, अने तेटला माटे छदोगब्राह्मणमां अने वदना सर्वानुक्रम सूत्रमा भगवान् कात्यायन ऋषिये लत्यु छे के: योह वा अविदितायच्छन्दोदैवतावनियोगेन मंत्रेण याजयति वाऽध्यापयति वा स स्थाणु वर्च्छति गर्त वा पधते वा प्रम्रियते पापीयान् भवति यातयामान्यस्य च्छंदांसि भवन्ति 'ज कोइ मनुष्य मंत्रना ऋषि, छंद, अने देवतादि स्वरूप जाध्या विना वेद मंत्रथी यजन करेछे वा करावेछे, तेमनुं अध्ययन करेछे, वा करावछे, ते पापिष्ठ थायछे. वृक्षना थडनी पठे स्थाणु (स्थिर, अचळ) थायछे; अंधकारवाळा गर्त (कूप वा नरक)मा पडछ, मरछे अने तना छेदो नष्ट थइ जायछे. ___ वळी ते फेटलु बधु उपयोगी छे ते दीववा माटे तेओ लखळे के, (अनुष्टुभा यजति, बृहत्या गापति, गायत्र्यास्तादि 1 . : For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 723