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प्रस्तावना.
ळमां गूजराती छे; एटले अन्य भाषामां रचायला ग्रंथी ए भाषा बोलनारने एक सरखा उपयोगी नथी. वळी गूर्जर गिरामां ने थोडा पण ग्रंथ रवाया छे, तेथी छंदःशास्त्रनुं आद्योपान्त यथा विवि ज्ञान धतुं नथी; तेम ज ते अपूर्ण होवाना कारणसर बहु उपयोगी थता नथी. अने प्राचीन आचार्योए जे सूत्रद्वारा संक्षेपमा जणान्युं छे, ने जेमां ते पछीना विद्वानोये अनेक विध विवृत्तिकरी वृद्धि करी छे, ते सघळं एक ग्रंथ परथी जाणी शकाय एम न होवाथी छंदः शास्त्राना प्रवर्त्तक पिंगलाचार्यश्री आरंमी आजची थइ गयेला संस्कृत, प्राकृत अने व्रजभाषानाविना उपलब्ध ग्रंथोपरथी छंदःशास्त्रसारना दोहनरूप एक ग्रंथ होय, तो आ शास्त्रना जिज्ञासुने बहु लाभ थाय एवं समजी आ छंदोग्रंथ लखवानी मने उत्साह थयो छे. अने छंदः शास्त्रना ग्रंथाने पिंगल एवं नाम आपवानो प्रथा पूर्वथी प्रच लित छे ते लोपवो मने योग्य न लागवाथी में पण आ ग्रंथने रणपिंगल एवं नाम आपल छे.
वेदकाळथी छंद अने गान पृथक् छे अने तेना नियमो पण भिन्न छे; तेथी आ छंदः शास्त्रमां केवळ छंदोज्ञान थवाना नियम आपेला छे, अने गान अथवा गीत, संगीत, पद्य इत्यादिक जूदा जूदा ताल अने लयथी थयेल छंदोनुं रूपान्तर छे, छतां ते केम योजना ए नियम अगत्यना होतां तेनो पृथक् ग्रंथ रचाय तो सारू एवी इच्छा राखुंछु.
आ ग्रंथना मुख्य पांच भाग पाडवामां आव्या छे. प्रवेशक, वैदिकछंद, मात्रामेळजाति, वर्णमेकछंद अने त्रिविध प्रस्तारादि प्रक्रिया.
प्रवेशक प्रकरणमां छंदः शास्त्रोपयोगी सघळा प्रकारनी संज्ञाओ अने पारिभाषिक शब्दोनी बहु संमत व्याख्याओ अने उदाहरण आप्यां छे.
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