Book Title: Punyadhya Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 5
________________ EN पुण्याढ्य चरित्र // 4 // सान्वय भाषांतर // 4 // अयं मम मान्यः, इति स: राजकुंजरः तस्य कुंजरराजस्य सन्मुखं ययौ. / / 6 / / युग्मं // अर्थ:-राजाओना 'घणा भाग्ययोगे आq रत्न आवे छे, एम चतुर पुरुषोए ते वखते ते हाथीनी प्रशंसा करवाथी // 5 // असाधारण गुणोवाळा आहाथीनुं मारे सन्मान करवू जोइये, एम विचारीने ते महान् राजा ते हस्तिराजनी सन्मुख आव्यो.॥६॥ युग्म. ननादाम्बुदुनादेन प्रीतः प्रेक्ष्य नृपं द्विपः / नृपस्त्वपूरि सेमाञ्चैर्वैडूरी भूरिवाङ्कुरैः // 7 // . ... अन्वया-नृपं प्रेक्ष्य द्विपः अंबुदनादेन ननाद, अंकुरैः वैडूरी भूः इव नृपः तु रोमांचेः अपूरि. // 7 // अर्थ:-जाने जोइने ते हाथी मेघना गर्जारवसरखो नाद. करवा लाग्यो, तथा वरसादथी भींजायेली जमीन जेम अंकुराओथी।" तेम (ते) राजा पण रोमांचोवड़े प्रफुल्लित थयो. // 7 // वामं च दक्षिणं चाईं शिरःकम्पनकैतवात् / मुहरस्याद्भुतं पश्यन्निवेति ध्यायतिस्म सः॥८॥ अन्वयः-शिर:कंपनकैतवात् अस्य अद्भुतं वामं च दक्षिण च अंग मुहुः पश्यन् इव सः इति ध्यायतिस्म. // 8 //

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