Book Title: Prakrit Rupmala
Author(s): Kasturvijay
Publisher: Vadilal Bapulal Shah

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Page 314
________________ สร संदिश् वृश् स्पृश प्र. विश प्र-मृश इष् प्र-मुष पिषू - भष् कृष कृष गवेष् श्लिष् ब्रक्ष काङ्क्ष प्रति-भ्रू तक्ष ॥ मुनि कस्तूर विजयविनिर्मिता ॥ णिरिणास, णिवह, अब सेह, पडिसा, सेह अवहर, नस्स, अप्पाह, संदिल, निअच्छ, पेच्छ, अषयच्छ, अध पम्हुस, विह, णिरिणास, णिरिणञ्ज, रौंच, चड्डु, पीस, ज्झ वज्ज, सoad, देक्ख, ओअक्ख, अब अक्ख, अवक्ख, पुलोअ, पुलअ निअ, अवआस, पास, फास, फंस, फरिल, छिव, हिह, आलुंख, आलिह रिअ, पविस पम्हुस . इच्छ नाशपाम वुक्क, भस, कडूढ, साअडूढ, अञ्च. अणच्छ, अयञ्छ, आइञ्छ, करिस अक्खोड, दुदुल्ल, ढण्ढोल, गमेस, धत्त वे सामग्ग, अवयास, परिअन्त, सिलेस, चोपड, मक्ख, संदेशो कहेषो देखयुं, (४१) आह, अहिलङ्घ, अहिलङ्ख, वच्च, वम्फ, मह, सिह, विलुम्प, कदुःख, सामय, विहीर, विरमाल, पडिक्ख तच्छ, चच्छ, रम्प, रम्फ, तक्ख स्पर्श करो, प्रवेश करवो विचार करवो भसकुं, निदयुं, भोंकबुं - खेचवुं, आकर्षण करयुं तरवार खेचवी गवेषणा करवी इच्छवु चोरी करवी, पीसवुं, चूर्ण कर बुं दलवु, आलिङ्गन करवु भेटवु, चोपड्वु, मिश्रितक रवुं, अशुद्धबोलवु पकठुकर बुं इच्छा करवी. राह जोवी छोलवु, तरछोडबुं धीकारj.

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