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पायाले
गंतव्वं
ता
गच्छउ
अग्गठाणं
पि
27.
करिणो
हरिणहरविया -
रियस्स
दीसंति
मोत्तिया
कुंभे
किविणाण
नवरि
मरणे
पयड
च्चिय
हुति
भंडारा
28.
म
न
कस्स
do
वि
जंप
उद्दारजणस्स
विविहरयणाई
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( पायाल) 7/1
(गंतव्व) विधि 1 / 1 अनि
अव्यय
(गच्छ) विधि 3 / 1 सक
[ ( अग्ग ) - ( ठाण) 2 / 1 ]
अव्यय
(करि) 6/1
[(हरि) - (णहर) - (वियार ) भूकृ 6 / 1]
(दीसंति) व कर्म 3 / 2 सक अनि
(मोत्तिय) 1/2
(कुंभ) 7/1
(किविण) 6/2 वि
अव्यय
( मरण) 7/1
(पयड) 1/2 वि आगे संयुक्त अक्षर (च्चिय) आने से दीर्घ स्वर ह्रस्व स्वर हुआ है।
अव्यय
(हु) व 3 /2 अक
(भंडार) 1/2
(दा) व 1 / 1 सक
अव्यय
(क) 4/1 सवि
अव्यय
(जंप ) व 3 / 1 सक
[ ( उद्दार) वि - ( जण) 4/1] [(विविह) वि-(रयण) 2/2]
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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= पाताल में
पहुँचे जाने की सम्भावना
=
= उस (इस) कारण से
= जावे (जाना चाहिए)
= आगे स्थान को
= भी
= हाथी के
=
=
= मोती
= गण्डस्थल पर
कृपणों
= केवल = मरने पर
सिंह के नखों द्वारा
चीरे हुए
देखे जाते हैं
—
= प्रकट
= ही
= होते हैं
= भण्डार
-
= देता हूँ
- नहीं
= किसी के लिए
=
= भी
= कहता है
= श्रेष्ठजन के लिए
= विविध रत्नों को
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