Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 177
________________ व = दोपहर = की तरह = मनुष्यों का मज्झण्हं. (मज्झण्ह) 1/1 अव्यय णराणं (णर) 6/2 जोव्वणमणवट्ठिदं [(जोव्वणं)+ (अणवह्रिद)] जोव्वणं (जोव्वण) 1/1 अणवट्ठिदं (अणवठ्ठ) भूकृ 1/1 (लोअ) 7/1 = यौवन = अस्थिर (चंचल) = संसार में .. = चन्द्रमा (चंद) 1/1 (हीण) 1/1 वि हीणो = घटता । अव्यय WE अव्यय = और = फिर = बढ़ता है = आती है (वड्ढ) व 3/1 अक (ए) व 3/1 सक य अव्यय = और ऋतु (उदु) 1/1 (अदीद) भूकृ 1/1 अनि अदीदो = बीती हुई वि अव्यय णदु = किन्तु जोव्वणं णियत्तइ णदीजलगदछिदं [(ण) + (दु)] ण (अव्यय) दु (अव्यय) (जोव्वण) 1/1 (णियत्त) व 3/1 अक [(नदी)+ (जल)+ (गद)+(छिद्द')2/1] [(नदी)-(जल)-(गद)-(छिद्द) 2/1] = यौवन = लौटता है = नदी के जल (प्रवाह में) गई हुई छोटी मछली = की तरह अव्यय 1. कभी-कभी प्रथमा विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137 की कृति) 170 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192