Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 170
________________ अव्यय = ही फलं दळूण लोहिदं (फल) 2/1 (दट्ठण) संकृ अनि (लोहिद) 2/1 वि (त) 4/1 स (दूरत्थ) 4/1 वि अव्यय (डेव) व 3/1 अक = फल को = देखकर = लाल (पके हुए) = उसके लिए = दूरस्थित = भी = कूदता है = यद्यपि दूरत्थस्स डेवदि जइ अव्यय चित्तूण छंडेदि अव्यय (घित्तूण) संकृ अनि (छंड) व 3/1 सक = ग्रहणकरके = छोड़ देता है ॥ डा. डा. . . पस्सदि . दव्वं अहिलसदि पावि, अव्यय (ज) 2/1 सवि (ज) 2/1 सवि (पस्स) व 3/1 सक (दव्व) 2/1 (अहिलस) व 3/1 सक (पाव) हेक (त) 2/1 स (त) 2/1 स [(सव्व) स- (जग) 3/1] अव्यय (जीव) 1/1 [(लोभ)+(आइटो)] [(लोभ)-(आइ8) 1/1 वि] अव्यय (तिप्प) व 3/1 अक = इस प्रकार = जिसको = जिसको = देखता है = द्रव्य को = इच्छा करता है = पाने के लिए = उसको उसको समस्त जग से सव्वजगेण वि = जीव जीवो लोभाइट्ठो = लोभ के आश्रित = नहीं = सन्तुष्ट होता है . तिप्पेदि . प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 163 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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