Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 169
________________ ... अव्यय = निश्चित रूप से = हेतुसूचक अव्यय अव्यय . गुणाणमुदधीव [(गुणाणं)+ (उदधी) + (इव)] गुणाणं (गुण) 6/2 उदधी (उदधि) 1/1। इव (अव्यय) (मच्छ) 6/2 = गुणों का = समुद्र = जैसे = मछलियों का मच्छाणं 13. माया व होइ . विस्सस्सणिज्जो पुज्जो गुरुव्व' लोगस्स पुरिसो (माया) 1/1 = माता. अव्यय = की तरह (हो) व 3/1 अक होता है (विस्सस्स) विकृ 1/1 = विश्वासयोग्य (पुज्ज) 1/1 = पूज्य [(गुरु)+(व्व)] (गुरु) 1/1 व्व (अ) = की तरह = गुरु, की तरह (लोग) 4/1 = लोग (लोगों) के लिए (पुरिस) 1/1 = व्यक्ति अव्यय = निश्चित रूप से (सच्चवाइ) 1/1 वि = सत्यवादी (हो) व 3/1 अक = होता है अव्यय = पादपूरक [(स) वि -(णियल्ल) 1/1 'अ' स्वार्थिक] = अपने आत्मीय अव्यय = की तरह (पिअ) 1/1 वि = प्रिय सच्चवाई होदि सणियल्लओ पिओ 14. अव्यय = जैसे = बन्दर थादो मक्कडओ (मक्कड) 'अ' स्वार्थिक 1/1 (धा) भूकृ 1/1 1. आगे संयुक्ताक्षर होने के कारण गुरू का गुरु हो गया है। = तृप्त हुआ 162 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग-2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


Page Navigation
1 ... 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192