Book Title: Prakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 144
________________ एगदा वासो 11. आगंतारे आरामागारे नगरे वि एगदा वासो सुसाणे सुरे वा रुक्खमूले क एगदा वासो 12. एतेहिं' मुणी सयणेहिं' समणे आसि . अव्यय (वास) 1 / 1 Jain Education International (आगंतार) 7/1 [ ( आराम) + (आगार ) ] [ ( आराम ) - (आगार) 7 / 1] (नगर) 7/1 अव्यय अव्यय (वास) 1/1 (सुसाण) 7/1 [(सुण्ण) + (अगारे)] [ ( सुण्ण ) - ( अगार) 7/1] अव्यय [ (रुख) - (मूल) 7/1] अव्यय अव्यय (वास) 1 / 1 ( एत) 3 / 2 सवि ( मुणि) 1/1 (सयण) 3/2 (स-मण) 1 / 1 वि (अस) भू 3 / 1 अक = कभी = ठहरना For Personal & Private Use Only मुसाफिर खाने में : बगीचे में (बने हुए) = स्थान में = = नगर में = भी = कभी = रहना = मसाण में सूने घर में = = तथा = = पेड़ के नीचे के भाग में = भी = कभी = रहना = इनमें = = मुनि = स्थानों में = समता युक्त मनवाले = रहे कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-137) आसी अथवा आसि, सभी - पुरुषों और वचनों में भूतकाल में काम में आता है । (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 749) प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 = 137 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192