Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Somkirti Acharya
Publisher: Jain Sahitya Sadan

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Page 4
________________ // श्री नेमिनाथाय नमः // P.P.Ad Gurransuri MS प्रद्युम्न चरित्र प्रथम सर्ग मङ्गलाचरण श्रीमतं सन्मतिं नत्वा नेमिनाथ जिनेश्वरम् / मदनं विश्वजेतापि वाधतुं नो शशाकयम् // वर्द्धमानं जिनं नत्वा वर्द्धमानं सतामिह / यद्र, पदर्शनाजातः सहस्र नयनो हरिः // प्रणम्य भारती देवीं जिनेन्द्र वचनोद्गताम् / चरित्रं कृष्ण पुत्रस्य वक्ष्ये सूत्रानुसारतः // भावार्थ-समवशरणादि स्वरूप अन्तरङ्ग एवं बहिरङ्ग वैभव-लक्ष्मी से युक्त श्री महावीर स्वामी तथा विश्वविजयी कामदेव की बाधा से रहित भगवान नेमिनाथ को हम नमस्कार करते हैं। जिनके दर्शन मात्र से सौधर्म इन्द्र सहस्राक्ष हुए थे, ऐसे वर्द्धमान स्वामी को एवं पवित्र जिनवाणी के प्रकाशक जिन भगवान को नमस्कार कर पूर्वाचार्यों के कथनानुसार श्रीकृष्णनारायण के पुत्र श्रीप्रद्युम्नकुमार का चरित्र लिखना प्रारम्भ किया जाता है। यद्यपि जिस चरित्र का वर्णन महासेनादि आचार्यों ने किया है, हम उस निर्मल चरित्र को कैसे लिख सकते हैं ? फिर भी उनके चरणों की जो कृपा प्राप्त हुई है, उससे विश्वास है कि प्रद्युम्न चरित्र लिखने में हमें कठिनाई न होगी। भारम्भ में ही हम संसार के समस्त उपकारी महानुभावों को नमस्कार करते हैं एवं साथ ही दर्जनों को भी धन्यवाद देते हैं, क्योंकि उनके प्रसाद से भी हमें शिक्षा प्राप्त होती है। हम स्वीकार करते हैं कि कहाँ हमारी मन्द बुद्धि तथा कहाँ यशस्वी प्रद्युम्न (अपने युग के कामदेव) का प्रशस्त निर्मल चरित्र ? यद्यपि हमारा यह प्रयत्न उपहास योग्य ही है, फिर भी हम भाशा करते हैं कि उसमें सफलता प्राप्त होगी। यह शुभ चरित्र पापों का विनाशक है, पुण्य प्राप्त करानेवाला है। इसके श्रवण तथा मनन से सत्पुरुषों की ज्ञान-वृद्धि Jun Gun Raracak Trust

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