Book Title: Prachin Stavanavali Author(s): Rampal Yati Publisher: Umravsinh Dungariya View full book textPage 4
________________ * भूमिका इस छोटी सी पुस्तक को श्रापके सम्मुख रखने का मुझे जो साहस हुआ है, उसके हेतुभूत उमरावसिंह जी ( टांक ) वकील हैं। क्योंकि एक दिन मुनिहरिसागरजी के पास उक्त महाशय बैठे थे, उस समय मैं भी उपस्थित था। तब क्षमा कल्याण जी चिदानन्द जी और श्रानन्दघनजी की कृतियों का ज़िक चल रहा था । उसी समय उमरावसिंहजी ने फर्माया कि श्रीरंगसुरिजी से लेकर अद्यावधि जितने भी श्राचार्य लखनऊ की गादी के कहलाने वाले हुए. उन सबकी कृतियां देखने में नहीं आतीं। दो एक स्तवन रंगसूरिजी कृत दादाजी महाराज के स्तुति रूप नज़र श्राते हैं, और कोई कृतियां व उनका इतिहास मालूम नहीं देता उस वक्त मेरे हृदय में गहरी ठेस लगी कि क्या हमारे आचार्यों की कृतियां कुछ भी नहीं हैं, इसी कारण मैंने उनकी कृति की गवेषणा की । उस गवेषणा के करने पर इतनी कृति याने जितने स्तवन दोहे श्रीरंगसुरिजी महाराज, नन्दीवर्द्धनसूरिजी व कल्याणसूरिजी महाराज कृत हैं, उनकी आप लोगों के सामने पेश करता हूँ । मुझे आशा है कि श्री रँगसूर्यादि की और भी कृतियां शोध करने से उपलब्ध हो सकेंगी और उनको आपके सामने लाकर यह दिखला देना चाहता हूँ कि यह आचार्य भी प्रभाविक, विद्वान् और आत्म शोधक हुए हैं। " इस पुस्तक में सब से पहिले मङ्गलाचरण रूप में गुण सुरि जी कृत नवकार छन्द दिया गया है । इसके अतिरिक्तPage Navigation
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