Book Title: Prachin Stavanavali Author(s): Rampal Yati Publisher: Umravsinh Dungariya View full book textPage 7
________________ लाध ॥ ६ ॥ अरि करि हरि सायण, डायण भूत वेत्ताल, सब पाप पणासे थासे मंगल माल ॥ इण समया संकट, दूर टले तत्काल जपे जिण गुण इम सुरवर सीस रसाल ॥७॥ इति ॥ ॥ श्री पार्श्वनाथाष्टकम् ॥ श्रीमद्देवेंद्रबृंदामलमणिमुकुटज्योतिषांचक्रपाले ब्यालीलैं पाद पीठं शठ कमठकृतोपद्रवाबाधितस्य ॥ लोकालोकावभासैः स्फुरदुरुचिमलज्ञान सद्यःप्रदीपः प्रध्वस्त ध्वांतजालः सवितरतु सुख पार्श्वनाथस्य निच्यं ॥ १ ॥ हूँ। हीं हूँ हैं विभाव स्वन्मरकतमपि भा क्रांत मूर्तेहि चंग हंसं तं बीज मंत्रैः कृत सकल जगत् क्षेम रतो रुवक्षः॥क्षां हीं के समस्त क्षितिदल मिहितः ज्योतिरुद्योतितार्थः मैं क्षों तौं क्ष क्षः बीजात्मक सवितनुतां घः सदा पार्श्वनाथः ॥२॥ हींकारं रेफ युक्त र र र र र र रा देव सं संयुगं तं ह्रीं क्लीं न्ट हीं सुरेफ वियदमल कलापंचकोद्भासः ॥ मत्पुष्ल वर्णैरखिल मिह जगन्मे विदहया नु कृष्टं धौषट् मंत्र पठतं त्रिजगदधिपते पार्श्व मां रक्ष नित्यं ॥ ३ ॥ उँ को ही सर्व वश्यं कुरु २ सर संक्रामणं तिष्ठ तिष्ठं यूँ हूँ हूँ रक्ष २ प्रबल बल महाभैरवांराति भीतेः हूँ ही हूँ द्रावय २ हन २ पौषट् बँध २ स्वाहा मन्त्रम् पठंतम् त्रिजगदधिपते पार्श्व मां रक्ष रक्ष ॥४॥ हं में भी क्वीं स हंसः कुवलय कलितै रंजितांग प्रसनैः भवा झ्व हः हं हं हर हर हर हूँ यः क्षयः क्ष प्रकोपं ॥वं झ हं सं पावं झः सर सर सर सौं स स सुबीजPage Navigation
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