Book Title: Prachin Stavanavali Author(s): Rampal Yati Publisher: Umravsinh Dungariya View full book textPage 8
________________ मंत्रैस्त्रायस्व स्थावरादि प्रबल विष सु संहारिभिः पार्श्वनाथः ॥ ५ ॥ मां चीं च्मों चमः क्षपतैरहिपतित मंत्राचरा रै: सनित्यं हा हा कारोग्रनादेवलदनल सिरराकल्प दीर्घाद्धि केशैः ॥ पिंगाचैर्लोल जिह्वैर्विषम विषधरालंकृतैस्तीच्ण दंष्ट्रैः भूतैः प्रेतैः पिशाचैरनधकृत महोपद्रवाद्रक्ष रक्ष ॥ ६ ॥ ॐ झों भूः शाकिनीनां सपदि हर मदं भिद्धि शुद्धद्ध बुद्धैः ग्लौं चमं तं दिव्य जिह्वा गति मति कुपिता स्तंभनं सं विधेहि फट् फट् फट् सर्व रोग ग्रहमरणभयोच्चाटनं चैव पार्श्वः श्रायस्वा शेष दोषा डुमरनरवरैर्नृतपादारविंदः ॥ ७ ॥ इथ्यं मं० त्राक्षरोध्यं वचनमनुभवं पार्श्वनाथस्य नित्यं विद्वेषोच्चाटन स्तंभन जय वश कृत्यापरोगांपनांदि ॥ प्रोत्सर्प्य जङ्गम स्थावर विषमविषध्वंसन स्वायुरारोगैश्वायं पादभक्त्या स्पृशति पठति यः स्तौति तस्येष्ट सिद्ध्यैः ॥ ८ ॥ इति सप्रभावकमष्टकं समाप्तम् || चौबीस जिन स्तुति ॥ 7 जिय जिणेसर देव । पहिलो श्री रिसहेसर प्रणमूँ, दूजो संभव अभिनंदन सुखदाई सुमति सुमति सुर सारे संव ॥ १ ॥ पहि० ॥ पदम प्रभु जिन अधिक पंडूर, श्री सुपाल चन्द्रा प्रभु स्वामि ॥ सुविधि शीतल श्रेयांस सवाई, नित प्रणभू वासु पूज्य सिरनामि ॥ २ ॥ पहि० ॥ विमल श्रनन्त सदा वरदाई, धर्म शांति कुँधु र घरि राग । मल्लिनाथ ते श्रीPage Navigation
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