Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Rampal Yati
Publisher: Umravsinh Dungariya

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Page 18
________________ ( १५ ) धरीये खल को नाम ॥ ३२ ॥ जिन रंग पूरत ही सदा पूरण होय न एह । विप्र, उदर, नरपति, अगनि, अन्त काजल निधि गेह ॥ ३३ ॥ दानशील तप तो भले जो हुवै भाव विशेष । जिन रंग जैसे ग्रह नवें भाव चक्र में देख ॥ ३४ ॥ शठ कुं शिक्षा दीजिये जिन रँग उलटी होय । जैसे नासा रहित कुं मुकर दिखावे कोय ॥ ३४ ॥ शव भक्ति जैनी दया मुसलमान इतबार । जिन रंग जो तीनों मिले तो जीव लहे भव पार ॥ ३६ ॥ अपने घर में सब बड़े राव रङ्क लौं साच । जिन रंग जगत में ते बड़े जिनको मानहिं पांच ॥ ३७ ॥ पाप की बात विसार दे धर्म कथा सुणि लेह । जिन रंग जैसे बह चले कादों भांदू मेह ॥ ३८ ॥ साख रयां लाखा गयां फिर कर लाखां होय । लाख रहयां साखा गयां लाख न लब्भे कोय ॥ ३६ ॥ कीरत ज्यु थिरती रहे विरती थिरती नांहि । विरती निरती बोलिये फिरती थिरती छांह ॥ ४० ॥ जैसे दीपक सदन में प्रगटत ज्योति प्रकाश । तैसे सदा शरीरमें जिन रंग जीव निवास ॥ ४१ ॥ जैसे काहु दृष्टि सों दीसे बालक चन्द । जिन रंग गुरु सुजानिये तैसे नित्यानन्द ॥४२॥ जैसे खीरज खीर में घृत को होत रहास । तैसे सदा शरीर में जिन रङ्ग जीव निवास ॥ ४३ ॥ जैसे काठ पाषाण में पावक कहीयत पास । तैसे सदा शरीर में जिन रंग जीव निवास ॥ ४४ ॥ यूं करि यूं न कर यूं किया यूं न होय । जिन रंग एती बात में विरला बूझे कोय ॥ ४५ ॥ जिनका

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