Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Rampal Yati
Publisher: Umravsinh Dungariya

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Page 28
________________ ॥ मुनिसुव्रत जिन स्तवन ॥ अथ राग श्रासावरी। मैं तो जाऊँ वारहजारीरे भवि जिन मुनिसुव्रत सुख कारीरे । अपराजितसे चव के प्रभु जी निज इच्छाएं धारी ॥ सावन सुदी पूनम तिथि दिवसे पाए हैं कूख मझारीरे भवि जिन मु० ॥ १ ॥ भूप सुमित्र राजगृही नगरें उत्तम कुल अवतारी ॥ है जननी पदमावती राणी कृष्ण वर्ण वपुधारीरे ॥ भविजिन ॥ २ ॥ ज्येष्ठ वदि आठम तिथि उत्तम श्रवण नक्षत्र विचारी । बीस धनुष तनु मकर रासि धर लछन कूर्म पे वारीरे ॥ भविजिन ॥ ३ ॥ सप्त सहस्र पंच शत बरसें आयु कुमार निहारी। बरस पंच दश सहस राजकर भयो जगत यश धारीरे ॥ भविजन ॥४॥ घांति अघाति कर्म क्षयकारक शुभ योगें अनुसारी । फाल्गुन शुक्ल सुद्वादश कीनों संयम अंगीकारीरे, ॥ भविजिन ॥ ५ ॥ अपराह्न प्रहरें जिनवर जी नील गुहा बन भारी । कृष्ण द्वादशि फाल्गुन की पाम्यो केबल ज्ञान मुरारीरे ॥ भविजिन ॥ ६ ॥ सप्त सहस्र पांच से बहत्तर कर तप कठिन करारी। ज्येष्ठ शुक्ला नवमी शिव पहुँते आयु तीस हजारीरे ॥ भविजिन ॥ ७ ॥ षोडश त्रिक शतक दश द्वादश चैत्र शुक्ल शुभचारी । पंचमी तिथि कल्याण सूरि जिन निरख निरख बलिहारीरे ॥ भविजिन ॥ ८॥ इति पदम् ॥

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