Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Rampal Yati
Publisher: Umravsinh Dungariya

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Page 17
________________ (१४ ) कानन पंखी शब्द सुनी कैसे मिलियन पीय ॥ १६ ॥ जैसे बीतत यामिनी जिन रंग उद्यत सुर । तैसे स्थिति पूरण भई प्रगटै प्रातम नूर ॥ २० ॥ जिन रंग दोष न दीजिये किसी को एकन्त । करना किसके हाथ है उदय महा बलवन्त । २१ । जैसे को शुभ नगर मग पहुँचण मग लेत । तैसे या व्यवहार सों जिन रंग धरीये हेत ॥ २२ ॥ जब लग है संसार में तब लग है व्यवहार । धरीये निश्चय ठीकता करीये शुभ व्यवहार ॥ २३ ॥ जिन रँग विनय पढाइवो जो सीखे होय सुजान । कारीगर की कोर है कोर न लग्यो पाषाण ॥ २४ ॥ धरम ध्यान ध्यावे नहीं रहे जो भारतमांहि । जिन रंग वह कैसे तरें प्रभु रंग रत्ता नाहि ॥ २५ ॥ जिन रंग सोजीया भला जिस शिर यश के अङ्क । वह जीया किस काम का जिस सिर चढ़े कलङ्क ॥ २६ ॥ जिन रंग पंडित अति पढ्या भोजन बहु विधि कीन । भूषण पहिने भामिनी कोरस गोरस हीन ॥ २७ ॥ पूँजी अपनी पार की मांडै सब व्यापार । जिन रंग लेखे सांच है सोहू साहूकार ॥ २८ ॥ जिन रंग सभा सुहावतो जन मुख बोले बोल । ताको कबहू तनिक भरि घटे न तन को तोल ॥ २६ ॥ महिमा इण कलिकाल की जिन रंग सब जग जोय। मगण हु ते मारग लगे नगण रहे सब कोय ॥ ३० ॥ स सनेही बन्धन परे नि सनेही को मोक्ष । सिरि के कचकुं बांधिये नेह धा कै दोष ॥ ३१ ॥ स सनेही दुखी ए हुवै सरेन पको काम । जिन रंग तिलकों पीलिये

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