Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Rampal Yati
Publisher: Umravsinh Dungariya

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Page 13
________________ ( १० ) नयन भय लयलीन ॥ सुख० ॥ जिन प्रतिमा जिन सारखी रे लाल भेद गिरों मति हीन ॥ सुख० ॥ ऋ० ॥ ६ ॥ जग में देव छे घणांरे लाल ते चित में न समाय ॥ सुख० ॥ मोयो मधुकर मालती रे लाल अवर न आवे दाय ॥ सुख० ॥ ऋ० ॥ ७ || ध्यान धरे मन ताहरे सरे लाल जाप जपे दिन रात ॥ सुख० ॥ दरसण देखे भावसूंरे लाल पूजा करै प्रभात ॥ सुख० ॥ ऋ० ॥ ८ ॥ पावे पूत पूतियारे लाल धन हीणा धन होय ॥ सुख० ॥ रोग शोक सगला टलेरे लाल गंज न सक्के कोय ॥ सुख० ॥ ऋ० ॥ ३ ॥ तारै भवसागर थकीरे लाल टाले गरभावास ॥ सुख ॥ अजर अमर पदवी लहरे लाल विलसें लील विलास ॥ सुख० ॥ ऋ० ॥ १० तूं गति तूं मति तूं धणी रे लाल तूं बान्धव तूं मित्त ॥ सुख० ॥ इण तीरथ दीठां थकोरे लाल आयो विमल गिरि चित्त ॥ सुख० ॥ ऋ० ॥ ११ ॥ हूँ गिरुवो हूँ गुण निलोरे लाल हूँ हुवो श्राज सनाथ ॥ सुख० ॥ समकित कीधो निरमलारे लाल लाधो मुक्तिनो साथ ॥ सुख० ॥ ऋ० ॥ १२ ॥ भाव भले वर्धमान सूरे लाल पूजा कुसुम कपूर ॥ सुख० ॥ देव दत्त वर प्रभाव सूरे लाल ज्ञान भक्ति भरपूर ॥ सुख० ॥ ऋ० ॥ १३ ॥ जागी पुण्यतणी दशारे लाल जो भेट्या देव जिनराज ॥ सुख० ॥ तूठो देव त्रिभुवन धणीरे लाल सेवकनें शिवराज ॥ सुख० ॥ ऋ० १४ ॥ मुनिवर गुण सतरेस मैंरे लाल मगसिर मास रसाल ॥ सुख० ॥ श्री जिन रंग पसावलेरे लाल फलीय मनोरथ माल ॥ सुख ॥ ऋ० ॥ १५ ॥

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