Book Title: Prachin Stavanavali
Author(s): Rampal Yati
Publisher: Umravsinh Dungariya

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Page 12
________________ बनी है सुजन टोरी । नेम प्रभु को ब्याह मनावत बत्तीस सहस संग लिय गोरी ॥१॥ भर पिचकारी नेम मुख पर डारत श्रृंगी छरत केशर घोरी। अवीर गुलाल को मंडप छायो भाल रचत चन्दन घोरी ।। यमु० ॥२॥ होरी वसन्त धमाल सुर गावत करत सेव यों झकझोरी । या उग्रसेन दुलारी विवाहो यों ही कहे भामां भोरी ॥ यमु० ॥३॥ मुसकाने प्रभु खेल देख के जग जंजाल दियो छोरी। अमृत पद दायक दम्पति सों रंग नमें दोउ कर जोरी ॥ यमु०॥ ४ ॥ इति । ॥ ऋषभ स्तवन ॥ ऋषभ जिणेसर भेटवारे लाल मो मन अधिक उच्छाह । सुखकारीरे देस छपन में दीपतोरे लाल गुण गिरुवो गज गाह ॥ सुख० १॥ ऋ०॥ बाल गोपाल सहू करेरे लाल ऋषभ देवरी प्राण ॥ सुख० ॥ अदभुत महिमा जेहनीरे लाल माने सहू राय राण ॥ सुख० । २ ऋ०॥ नव खण्ड सन्ध्या अंगनारे लाल दीसै परतिख रूप ॥ सुख ॥ दीठा कोई न दूसरोरे लाल इण युगल स्वरूप ॥ सुख० ॥३॥ ऋ०॥ दूरथकी हूँ श्रावीयारे लाल यात्रा करण जिनराज । सुख कूरम नजर निहालीयेरे लाल महरकरी महाराज ॥ सुख०॥ ऋ० ४॥ लांघ्या कब घर घाटजेरे लाल लांधी विषमी नाल ॥ सुख०॥ दरसण दीठे ताहरोरे लाल भांज गया जंजाल ॥ सुख० ॥ ऋ० ॥ ५ ॥ निरखी मूरत सांवलीरे लाल

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