Book Title: Prachin Karmgranth Satik Author(s): Jain Atmanand Sabha Publisher: Jain Atmanand Sabha View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SANSACSUSSOLUGUST अन्थोनां नाम. का . | लोकसंख्या. ग्रन्थरच्याना कालविगेरेनी हकीकत. " खोपज्ञवृत्ति चन्द्रषिमहत्तर श्लो० ९००० बीजा नंबरमा पनसंग्रह जुओ. " वृहद्वत्ति * | मलयगिरिसूरि श्लो०१८८५०/ पहेला नंबरमा कर्मप्रकृतिनी वृत्तिमा शुभो. " दीपक x |जिनेश्वरसूरिशिष्यवामदेव श्लो० २५०० जिनेश्वरसूरिनामना आचार्यों भनेक गएला होवाथी आ वामदेव क्या जिनेश्वरसूरिना शिष्य हता ते विषयमा प्रशस्ति जोवायी कदाच निर्णय थावे. ३ प्राचीन छ कर्मग्रन्थ | गा०५६७ (१) कर्मविपाक * गर्षि गा० १६८ श्रीगर्गपिने उपमितिभवप्रपञ्चाकथानी प्रशस्तिमा सिद्धर्षिए पोताना दीक्षागुरुतरीके जणापाछे. सिबर्षिए ते कथा सं०९६९ मां रचीछे तेथी तेज भरसामा गर्षि विद्यमान हता. " वृत्ति * परमानन्दसूरि |श्लो० ९२२ | मा वृत्तिना को भद्रेश्वरसूरिना शिष्प शान्तिसूरिना शिष्य अभयदेव- । सूरिना शिष्य परमान्दसूरि छे. तेमने पोतानो समय प्राप्यो नथी. परंतु तेभोश्री सं० १२२१ मा कुमारपालना राज्यमा हता एम पिटर्सनना जा रिपोर्टनापन्न १९मा हे.वली आवृत्ति सं०१२८८ मां ताडपत्र उपर लखाएली मही आवेळे. तेथी तेभोश्रीनो कुमारपालना राज्यमा होवानो संभव छे. "व्याख्या श्लो०१०००। पारुषाकारे पोतार्नु नाम आप्यु नथी पण पुस्तक सं०.१२७५ मा ताब-12 पत्र उपर छखाएलुं मलीभावे. तेथी तेओश्री सं १२०५ थी पहेला थया के. For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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