Book Title: Prachin Karmgranth Satik
Author(s): Jain Atmanand Sabha
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नंबर ग्रन्थोना नाम. कर्ता. लोकसंख्या. ग्रन्थरच्याना कालविगेरेनी हकीकत. संस्कृत चार कर्मग्रन्थ | जयतिलकसूरि लो० ५६९ Tमा आचार्य आगमगच्छना छे भने तेओ विक्रमनी १५ मी सदीनी शस्वासमा हता. ८ कर्मप्रकृतिद्वात्रिंशका गा० ३२ आ द्वात्रिंशिकाना कर्ताए पोताचु नाम मायुं नथी. ९ मावप्रकरण * | विजयविमलगणी गा० ३० मा भावप्रकरणना का मानन्दविमकसूरिना शिष्य विजयविमळगणी | " स्वोपज्ञवृत्ति " श्लो०३२५ |ले. मने तमोए सं० ११२३ मा मा अवनिरची के. बंबहेतूदयत्रिमंगी हर्षकुलगणी गा०६५ मा प्रकरणमा को कश्मीसागरसूरिना शिष्य के. मने तेमो पिकमनी | सोकमी सदीमा थमा .. "वृत्ति वानर्षिगणी श्लो०११५० मा वृत्तिना का आनन्दनिमलसरिना शिष्य वानर्षिगणी अपरनाम | विजयविमलगलिए संवत् १६०२ मा रची छे. ११ बन्धोदयसचापकरण विजयविमलगणि गा०२४ . नंबर नवा भावप्रकरण जुमो. " स्वोपजअवचूरि लो० ३०० | कर्मसंवेधप्रकरण x राजहंसशिष्य देवचन्द्र लो० ४०० कानो-समय प्रन्थ जोबाथी खबर पढे. ४|१३ कर्मसंवेधभंगप्रकरण ४ पत्र-१० मा अन्धना कानुं नाम विगेरे अन्य जोषाथी कवाच मली थावे. प्रस्तुतकर्मग्रन्थानां मुद्रणकारणानियद्यपि कर्मतत्त्वं यथावदतिसूक्ष्मं च परिज्ञातुं कर्मप्रकृतिपच्चसङ्कहावेव पर्याप्ती, तथापि तत्प्रवेशकृतेऽत्यावश्यकशास्त्रीयपरिभाषाशैलीकर्म READERA For Private And Personal Use Only

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