Book Title: Prachin Karmgranth Satik Author(s): Jain Atmanand Sabha Publisher: Jain Atmanand Sabha View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कर्मग्रन्थ ॥ ४ ॥ नंबर " ग्रन्थोनां नाम. टिप्पन x कर्चा. उदयप्रभसूर (२) कर्मस्तव * " भाष्य " भाष्य * " वृत्ति * गोविंदाचार्य " टिप्पण x उदयप्रभसूरि (३) बन्धवामित्व * " वृत्ति * हरिभद्रसूरि 2 www.kobatirth.org श्लोकसंख्या. १० ४२० लो० गा० ५७ गा० २४ गा० ३२ लो० १०९० श्लो० २९२ गा० ५४ श्लो० ५६० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रन्थरच्याना कालविगेरेनी हकीकत. उदयप्रभसूरि बे थया छे एक विजयसेनसूरिना शिष्य अने बीजा सपादलक्षीय रविप्रभना शिष्य आ बने विक्रमनी तेरमी सदीमां विद्यमान हता. तेमांभी आ टिप्पन कोणे कर्तुं ते टिप्पनेनी प्रशस्ति जोवाथी मालम पडे. कर्मस्तवना कर्त्ता पोतानुं नाम विगेरे ओ नयी. कर्त्तानुं नाम विगेरे उपलब्ध थयुं नथी. आ भाग्यना कतनुं पण नाम विगेरे मलीआवतुं नथी तेमज उपरनुं भाष्य आ भाष्यमां आवी गयुं छे. गोविंदाचार्य देवनागना शिष्य हता. अने तेभोश्री क्यारे थइगया तेनो निर्णय हजु थयो नथी तो पण आ वृत्ति सं० १९८८ मां ताडपत्र उपर लखाएली मली आवे छे. तेथी तेओश्री सं० १२८८ थी पहेला थया छे. श्रीजा नंबरमां कर्मविपाकना टिप्पनमा जुओ. बन्धस्वामित्वना कर्त्ता पोतानुं नाम विगेरे आप्युं नथी. आ हरिभद्रसूरि वृद्धगच्छीय श्रीमानदेवसूरिना शिष्य श्रीजिनदेवोपाध्यायना शिष्य हता. तेभोश्रीए पाटणमां सिद्धराजना राज्यमां सं० ११७२ मां आवृत्ति रची छे. For Private And Personal Use Only प्रस्तावना. ॥ ४ ॥Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 476