Book Title: Prachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan Author(s): Kamal Jain Publisher: Parshwanath Vidyashram Shodh Samsthan View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय कार्ल मार्क्स ने मानव के समुचित विकास के लिए आर्थिक उत्पादन और समुचित वितरण पर बल दिया है, ताकि मानव जीवन का भौतिक स्तर ऊँचा हो सके। आज से हजारों साल पहले जैन परंपरा के आदि तीर्थंकर ऋषभदेव ने एक अर्थ-व्यवस्था का निर्माण किया था जिसमें उत्पादन एवं वितरण के कुछ नियम निश्चित हुए थे। जैनों की मान्यता के अनुसार जब प्रकृति की उत्पादन क्षमता क्षीण होने लगी थी और प्रजा में परस्पर संघर्ष होने लगे थे तो आदितीर्थङ्कर ने अपनी प्रजा का संघर्ष मिटाने के लिए स्वश्रम से समुचित उत्पादन करने की प्रेरणा दी थी। किन्तु जब सञ्चय अधिक होने लगा, तो अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर ने अपरिग्रह के सिद्धान्त द्वारा धनिकवर्ग को अपनी अतिरिक्त संपत्ति को जनकल्याण के लिये विसर्जित करने की प्रेरणा देकर समवितरण के सिद्धान्त का सूत्रपात किया। __ जैन आगम और आगमिक-व्याख्या-साहित्य में जो आर्थिक विषयों एवं प्रश्नों से संबंधित सूचनाएँ मिलती हैं, डा० कमल जैन ने उनका शोधपूर्ण अध्ययन करके प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की है। हिन्दी में इस प्रकार का ग्रन्थ नहीं था। अतः संस्थान ने इसके प्रकाशन का निर्णय लिया और आज हमें इसे पाठकों को समर्पित करते हुए प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। हम ग्रन्थ की लेखिका डा० कमल जैन एवं इस ग्रन्थ की रचना से लेकर प्रकाशन तक सूत्रधार के रूप में कार्य करने वाले प्रो० सागरमल जैन के प्रति भी अपना आभार व्यक्त करते हैं । यद्यपि इन दोनों के विद्याश्रम से ऐसे-निकट सम्बन्ध हैं कि यह शाब्दिक आभार मात्र औपचारिकता कहा जायेगा। इस ग्रन्थ के सम्पादन एवं प्रूफ संशोधन में श्री अशोक कुमार सिंह ने अथक श्रम किया, अतः उनके प्रति भी आभार व्यक्त करते हैं । अन्त में इसके सुन्दर एवं सत्वर मुद्रण के लिए वर्द्धमान मुद्रणालय के प्रति तथा प्रकाशन व्यवस्था के लिए डा० शिवप्रसाद के प्रति भी आभार व्यक्त करते हैं। भूपेन्द्रनाथ जैन मंत्रीPage Navigation
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