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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
लाट देश के ओमकारपुर के भीमराज और भड़ौच के राजा सूरिजी के भक्त थे जिन्हें ज्ञान देकर जैन धर्मावलम्बी बनाया । 'मुरुण्ड' का तात्पर्य राजा या स्वामी होता है जिसके लिए चीनी शब्द 'वाङ्ग' प्रयुक्त होता है । भारतीय ग्रन्थों और प्रशस्तियों में शक - मुरुण्ड एक साथ आते हैं । मथुरा के क्षत्रपों का समय दूसरी शताब्दी के मध्य में है जो सम्भवतः पाटलिपुत्र तक बढ़ गये होंगे । शोडास ( सुदास प्रथम शताब्दी ई० ) के बाद इन शकों की शक्ति क्षीण होने लगी । उनमें से कुछ ने जैन धर्म और बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया ।
ढक पर्वत गुजरात में आधुनिक ढाक है । गोंडल ( २२° ७०.५° ) के पास ढंकगिरि नामक खडकवाली पहाड़ी है । इसी के पास ढांक ग्राम है जिसका प्राचीन नाम तिलतिलपट्टण था । यहीं आदिनाथ, शान्ति, पार्श्व, महावीर और अम्बिकादेवी आदि की कुषाणकालीन खण्डित मूर्तियाँ हैं । इसी ढंक पर्वत पर नागार्जुन ने पार्श्व-प्रतिमाहरण के पश्चात् रस - स्तम्भन किया था । ढांक से ४० मील पश्चिम धूमली नगर है ।"
इस प्रबन्ध में वर्णित सातवाहन राजा वासिष्ठीपुत्र पुलुमावि द्वितीय ( ८६ - ११४ ई० ) हो सकता है। कुछ विद्वानों ने पुलुमावि द्वितीय के राज्यारोहण की तिथि १३०-५८ ई० मानी है। दोनों दशाओं में पुलुमावि द्वितीय ही वह सातवाहन राजा रहा होगा जिसने प्रतिष्ठान पर अधिकार रखा था और जैन पादलिप्त का स्वागत किया
१. जैपई, पृ० ३५८; किन्तु इपि० इण्डि०, छब्बीसवां भाग पाँचवाँ जनवरी, १९४२; लॉ : हि० ज्यो०, पृ० ३७० में २५ मील का अन्तर बताया गया है ।
२. वेंकटराव द्वारा प्रदत्त सातवाहन राजाओं की तिथियों के लिए दे० वेंकटराव का लेख 'द प्री- सातवाहन ऐण्ड सातवाहन पीरियड्स, याजदानी ( सम्पा० ), द अर्ली हिस्टरी ऑफ द डेकन, नई दिल्ली, १९८२,
पृ० ११२ ।
३. मजुमदार, आर० सी० : द एज ऑफ इम्पीरियल युनिटी, बम्बई, १९५१, पृ० २०४; रायचौधरी : प्रा० भा० का राज० इति०, पृ० ३६७; पाण्डेय, राजबली : प्रा० भा०, पृ० २१३ व टि० ४ ।
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