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तुलनात्मक अध्ययन
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हासिक महत्ता घटा देती है।' अमीर खुसरो ने किसी भी स्थल पर अपने को इतिहासकार नहीं माना है और स्पष्ट बतलाया है कि उसने महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विषयों पर किसी भी शासक के कहने पर या उसे समर्पित करने के लिए नहीं लिखा है। सर्वश्रेष्ठ सुल्तान में भी गुण-दोष पाये जाते है किन्तु अमीर खुसरो ने गुणों पर ही लिखा और दोषों को नजरअन्दाज कर दिया। राजशेखर या बरनी की तुलना में खुसरो अच्छा इतिहासकार नहीं है। कवि वह पहले है और इतिहासकार बाद में।
इसामी कृत फुतूह-उल-सलातीन ( १३५०-५१ ) में गजनी के यामनियों के अभ्युदय से लेकर मुहम्मद बिन तुगलक के शासन तक का इतिहास है। इसामी दिल्ली-सल्तनत के अधिकारियों के परिवार का और मुहम्मद तुगलक के अत्याचार का शिकार था। अतः वह दौलताबाद में बस गया और फुतूह-उल-सलातीन की रचना बहमनीराज्य के संस्थापक हसन ( १३४७-५८ ई० ) के आश्रय में की और उसे ही समर्पित कर दिया। फुतूह-उल-सलातीन इसामी के पूर्वजों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर लिखी गयी थी तथापि इसामी अपनी सूचना के स्रोतों का उल्लेख नहीं करता है, परन्तु प्रतीत होता है कि उसने तबकात-ए-नासिरी का उपयोग नहीं किया है ।
इस प्रकार फुतूह-उल-सलातीन तुगलककालीन एकमात्र ऐसा इतिहासग्रन्थ है जिसका रचयिता राजवंश के भय या कृपा से परे था। चूंकि सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने इसामी को अपार कष्ट दिया था १. अस्करी, सैय्यद हसन का लेख अमीर खुसरो ऐज ए हिस्टोरियन,
हसन, एम० ( सम्पा० ) : हिस्टोरिएन्स ऑफ मेडिवल इण्डिया, मेरठ,
१९६८, पृ० २३ में। २. वही, पृ० २५ । ३. मजुमदार, आर० सी० ( सम्पा० ) : द देलही सल्तनेत, भा० वि.
भवन, बम्बई, १९६० पृ० ३; श्रीवास्तव, आ० ला० : पूर्वनिर्दिष्ट,
पृ० १०६ । ४. इसामी को अपने ९५ वर्षीय पितामह के साथ दिल्ली से दौलताबाद
जाने के लिये विवश किया गया था। वृद्ध मार्ग में चल बसा ।
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