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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
एक दृष्टि से वाल्तेयर ( १६९४-१७७८ ई० ) पाश्चात्य इतिहासदर्शन का जनक माना जाता है, और हीगेल ( १७७०-१८३१ ई०) । इतिहासवाद का प्रवर्तक । परन्तु राजशेखर ने इन इतिहासकारों से शताब्दियों पूर्व इतिहास का विश्लेषणात्मक एवं वैज्ञानिक वर्णन करके अपने इतिहास-दर्शन का एक ढाँचा अवश्य खड़ा कर लिया था।
विश्लेषणात्मक इतिहास-दर्शन का अभिप्राय अतीत का आलोचनात्मक तथा सारांशयुक्त प्रस्तुतीकरण होता है । राजशेखर ने अपने इतिहास में आचार्यों, कवियों, राजाओं या श्रावकों का प्रभाव समाज के विकास में उसी काल और उसी सीमा तक परिमित किया जहाँ, जिस काल तक और जिस सीमा तक समाज ने उसे अङ्गीकार किया। इतिहास के दष्टिकोण पर भी राजशेखर सामग्री को पूर्व और पर के क्रम में बाँधकर घटनाओं और उनकी शृङ्खला के कारणों और उनके परिणामों को सामने रखते हुए तथ्यों का उद्घाटन करता है। इस प्रकार इतिहास में वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रयोग करता है। इस परम्परा में इतिहासकार राजशेखर स्वयं घटनाओं के बीच में नहीं आ जाता, उनको वह अपनी सुविधा अथवा रुचि से नहीं रखता और न ही उनके प्रति पूर्वाग्रह के वशीभूत हो उनके रूप बदलने की वह चेष्टा करता है।
राजशेखर प्रबन्धकोश के प्रारम्भ में वन्दना करने के उपरान्त अत्यन्त विनीत शब्दों में गुरु का परिचय देता है तथा प्रबन्ध और चरित में अन्तर बतलाने के उपरान्त इस प्रबन्धकोश की योजना पर विशद् प्रकाश डालता है। प्रबन्धकार का अभिप्राय अतीत सम्बन्धी नवीन तथ्यों को प्रकाश में लाना तथा ज्ञान की सीमा को विस्तृत करना है। एक शोधकर्ता की भाँति राजशेखर का उद्देश्य नवीन तथ्यों की प्रस्तुति, उपलब्ध तथ्यों की नयी व्याख्या और तथ्यों का सिद्धान्ततः निरूपण है। तथ्यों के इसी सैद्धान्तिक निरूपण के समय राजशेखर का इतिहास-दर्शन उदभूत होता है। राजशेखर ने अपने प्रबन्धकोश का प्रणयन अधिकांशतः गद्य में किया है। काव्य की अपेक्षा गद्य, इतिहास के अधिक समीप होता है। अतः गद्य में इतिहासलेखन उसके इतिहास-दर्शन का महत्वपूर्ण पक्ष है।
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