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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
प्रबन्धों और प्रकरणों की शब्दगत और तथ्यगत सादृश्यता प्रबन्धचिन्तामणि और पुरातनप्रबन्धसंग्रह में भी दीख पड़ती है, “यद्यपि वह समानता प्रबन्धकोश के जितनी विपुल और विशेष रूप में नहीं है।" राजशेखरसूरि के रचे हुए पूर्वोक्त पादलिप्ताचार्य और रत्नश्रावक नामक दोनों प्रबन्धों की भाषा प्रबन्धचिन्तामणि के प्रबन्धों की भाषासे अलग प्रतीत होती है।
प्रबन्धकोशागत कुल ४० पद्य ऐसे हैं, जो शब्दशः पुरातनप्रबन्धसङ्ग्रह में भी पाये जाते हैं।।
पुरातनप्रबन्धसंग्रह (बी प्रति ) में उदयननृप प्रबन्ध उपलब्ध होता है जो राजशेखरसूरि रचित प्रबन्धकोश के तद्विषयक प्रबन्ध से प्रायः शब्दशः मिलता है। अतः प्रबन्धकोश में उपलब्ध होने के कारण पुरातनप्रबन्धसंग्रह में पुनर्मुद्रित नहीं किया गया है । सम्भव है कि प्रबन्धकोशकार ने यह प्रबन्ध भी पुरातनप्रबन्धसंग्रह से उपरिलिखित कारणवशात् ही नकल कर लिया हो, यद्यपि कुछ पाठ-भेद अवश्य है।
पुरातनप्रबन्धसंग्रह के वस्तुपाल-तेजपालप्रबन्ध' के नाम देखने से तो ऐसा भ्रम उत्पन्न होता है कि यह वही प्रबन्ध होगा जो प्रबन्धकोश के अन्तिम भाग में ग्रथित है।' इस संशय का कारण यह है कि पुरातनप्रबन्धसंग्रह की केवल एक ( पीएस ) प्रति में यह प्रबन्ध उपलब्ध है और इस प्रबन्ध की स्वतंत्र प्रतियाँ कहीं-कहीं दृष्टिगोचर होती हैं। लेकिन प्रति का प्रत्यक्ष अवलोकन करने पर विदित हुआ कि पुरातनप्रवन्धसंग्रह का यह वस्तुपाल-तेजपाल-प्रबन्ध राजशेखरकृत प्रबन्ध से सर्वथा भिन्न है।
१. जिनविजय ( सम्पा० ) पुप्रस, प्रास्ताविक वक्तव्य, पृ० ७ । २. वही, पृ० १४, टि० १ । ३. प्रको, पृ० ८६-८८ । ४. पुप्रस, पृ० ५३-७८ । ५. प्रको, पृ० १०१-१३० । ६. जिनविजय ( सम्पा० ) पुप्रस, प्रास्ताविक वक्तव्य, पृ० २४ ।
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