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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
मुद्रा की माँग पूरी कर दी गयी। फिर भी वह न लौटा ।
कतिपय पूर्ववर्ती प्रबन्धों में राजशेखर ने दिगम्बरों और अजैनों का इतिवृत्त प्रदान कर अपनी धर्मनिरपेक्षता का परिचय दे दिया है और इस प्रबन्ध में राजनीतिक इतिहास उपलब्ध कराकर इतिहास को एक नवीन दिशा दी है । मदनवर्म प्रबन्ध में राजशेखर सुगठित राजवंशीय इतिहास प्रदान करता है और उसके प्रबन्ध का स्वरूप विशुद्ध राजनीतिक हो जाता है । प्रस्तुत प्रबन्ध में राजशेखर ने दो घटनाओं और दो विरोधी व्यक्तित्वों के विषम चरित्रों का विश्लेषण किया है।
पहली घटना चौलुक्य - परमार युद्ध तथा दूसरी चौलुक्य-चन्देल संघर्ष है। राजशेखर के अनुसार सिद्धराज के समय में चालुक्य - परमार युद्ध १२ वर्षों तक चला । यशः पटह हाथी से सिद्धराज ने धारा दुर्ग की अर्गला तुड़वाकर सोमनाथ में लगवायी, जो राजशेखर के समय में भी लगी हुई थी । नरवर्मा परमार काष्ठ - पिंजड़े में डाल दिया गया। इस घटना की पुष्टि अन्य ग्रन्थों एवं अभिलेखों द्वारा होती है । परन्तु चार तथ्य उभड़कर सामने आते हैं । प्रथम, राजशेखर ने मेरुतुङ्ग द्वारा प्रबन्धचिन्तामणि में की गयी गलती को सुधारा और सिद्धराज के समकालीन परमार नरेश का नाम यशोवर्मा ( ११३४ - ४२ ई० ) न कहकर सही-सही नरवर्मा ( १०९४ - ११३३ ई० ) बतलाया । दूसरे, जयसिंह सूरि, जिनमण्डल तथा राजशेखर यह कहते हैं कि सिद्धराज ने नरवर्मा को मार कर उसकी खाल से अपनी कृपाण की खोल बनवाने की प्रतिज्ञा की थी । किन्तु राजशेखर ने यह तथ्य प्रकाशित किया है कि नीति वचन के अनुसार राजा अवध्य
१. सोमेश्वरकृत कीर्तिकौमुदी, द्वितीय, पृ० ३०-३२; सुरथोत्मव, १५वाँ, २२; द्वयाश्रय काव्य, १४वाँ; वडनगर प्रशस्ति, इपि०, इण्डि०, जिल्द १, पृ० २९६, श्लोक ११; बालचन्द्रकृत वसन्त विलास, तृतीय, पृ० २१ - २२; रासमाला, पृ० १११-११ ; दोहन अभिलेख, इण्डि० एण्टि०, जिल्द १०, पृ० १५९, श्लोक |
२. कुमारपालभूपालचरित, प्रथम, ४१ कुमारपालप्रबन्ध, ७ प्रको, पृ० ९१ पाहिनाइ, पृ० ११० ।
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