Book Title: Payaya Kusumavali
Author(s): Madhav S Randive
Publisher: Prakrit Bhasha Prachar Samiti

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कविल मुणिचरियं 'उत्तरउझयणसुत्तं' ( उत्तराध्ययन सूत्रम् ) इस जैनागम के मूलसूत्र पर श्रीदेवेन्द्राचार्य या ( नेमिचन्द्रसूरि ) ने ई. स. १०७३ में सुखबोधा नाम की संस्कृत में टीका लिखकर पूर्ण की। उन्होंने श्लोकादि के स्पष्टी. करणार्थ प्राकृत ( जैन महाराष्ट्री ) में सविस्तर कथाएँ लिखी है यही इस टीकाग्रंथ की विशेषता है। उत्तराध्ययन में 'काविलियं' नाम के ८वें अध्याय पर टीका लिखते समय देवेन्द्रने प्रथम कपिलमनि की कथा दी है। लोभ का अमर्याद स्वरूप देखकर कपिल संसारविरक्त मुनि कैसे बना, यह वत्तान्त देवेन्द्र सूरि ने आकर्षक शैली में लिखा है। 'उत्तरज्झयणसुत्त' (उत्तराध्ययन सूत्रम् ) या जैनागमातील मूलसूत्रावर देवेंद्राचार्य किंवा ( नेमिचन्द्रसूरि ) यांनी ई. स. १०७३ मध्ये सुखबोधा नावाची संस्कृतात टोका लिहून पूर्ण केली. या टीकेचे वैशिटय म्हणजे श्लोकादींच्या स्पष्टीकरणार्थ त्यांनी प्राकृत (जैन महाराष्ट्री ) भाषेत लिहिलेल्या सविस्तर कथा होत. उत्तराध्ययनातील 'काविलिय' या ८ व्या अध्यायावर टीका लिहिताना देवेंद्रांनी प्रथम कपिलाची कथा दिली आहे. येथे लोभाचे अमर्याद स्वरूप पाहून तो संसार विरक्त मुनि कसा बनला, हे मोठ्या आकर्षक पद्धतीने सांगितले आहे. ) For Private And Personal Use Only

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