Book Title: Paumchariyam Part 01 Author(s): Parshvaratnavijay Publisher: Omkarsuri Aradhana Bhavan View full book textPage 7
________________ १. श्री ला० द० भा० संस्कृतविद्यामंदिर-अहमदाबादके हस्तलिखित ग्रन्थसंग्रहमें इस प्रतिका क्रमाङ्क २०८५ है । प्रतिके अन्तमें लेखनसंवत् नहीं है फिर भी आकार प्रकार और विशेषतः लिपिके मोड़से प्रस्तुत प्रतिका लेखनसमय विक्रमकी १६वीं शतीका उत्तरार्द्ध कहा जा सकता है। प्रतिकी लिपि सुन्दर और सुवाच्य है, स्थिति भी सुन्दर है । कुल १९७ पत्रात्मक इस प्रतिके आद्य १ से ९ तथा २६, ३४, ३७ और ८१ वाँ पत्र मिलके कुल १३ पत्र अप्राप्य हैं । प्रत्येक पत्रकी प्रत्येक पृष्ठिमें १६ पंक्तियाँ हैं, प्रत्येक पंक्तिमें ५६ से ६० तक अक्षर हैं। प्रत्येक पृष्ठिकी मध्यस्थ चार पंक्तियों में मध्यभाग का चतुष्कोण भाग लेखकने रिक्त रखा है। ये मध्यस्थ चार पंक्तियोमें ५३-५४ अक्षर हैं । लम्बाई चोड़ाई १० x ४ इंच प्रमाण है । ग्रन्थ पूर्ण होने के बाद "ग्रन्थाग्रं १०५५० सर्वसंख्या ॥" इतना ही लेखकने लिखा है । अतः लेखक की कोई जानकारी नहीं मिलती। २. श्री ला. द.भा. संस्कृतिविद्यामन्दिर-अहमदाबाद के हस्तलिखित ग्रन्थसंग्रह में प्रस्तुत प्रतिका क्रमाङ्क ४१७८ है । २१९ पत्रात्मक इस प्रतिके ६९ से १२८ पत्र अप्राप्य हैं । प्रत्येक पत्रकी प्रत्येक पृष्ठिमें १५ पंक्तियाँ हैं । प्रत्येक पंक्ति में कम से कम ५० और अधिक से अधिक ५८ अक्षर हैं । प्रत्येक पृष्ठि के मध्यभाग की पांच पंक्तिओं के बीच में लेखकने अष्टकोण भाग रिक्त रखा है। ऊपर निर्दिष्ट (क्रमाङ्क-२०८५ वाली) प्रतिकी अपेक्षा यह प्रति अशुद्ध है । लम्बाई चोड़ाई १० x ४ इंच प्रमाण है। लेखक की पुष्पिका इस प्रकार है - "अक्सर मत्ता बिंदू जं च न लिहियं अयाणमाणेणं । तं खमसु सव्वमहं (महं सव्वं) तित्थयरविणग्गया वाणी ॥ छ ॥ शुभ भवतु ॥ श्रीसंघस्य श्रियो ३ : (स्तु) ॥ संवत् १६४८ वर्षे वइशाष वदि ३ बुधे ३ (ओ) झा रुद्र लिखितं । लेखकपाठकयोर्जयोऽस्तु ॥" ___ भारतीय दर्शकोने गभीर अभ्यासी श्री पं. दलसुखभाई मालवणियाजीने प्रस्तुत ग्रन्थका साद्यन्त समग्र प्रूफवाचन करके सहयोग देकर हमारा श्रम हलका किया है एतदर्थ उन्हें धन्यवाद देता हूँ। - मुनि पुण्यविजय चैत्रकृष्णा १३ ता. २-४-६३ लूनसावाडा, मोटी पोल के सामने, जैन उपाश्रय, अमदावाद-१ Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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