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पाँचवाँ उत्तर काण्ड
अठहत्तरवी मन्धि
(रावणकी मृत्युकी भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएँ हुई) उसने मरकर, देवताओंको सुख, भाइयोंको दुःख, रामको उनकी पन्नी, लक्ष्मणको जय और विभीषणको अविचल राज्य दिया।
[१] दशानन यशशेष रह गया और सूरज भी हूब गया । तव तपसूर भवनिशाको समाप्त करनेवाले छप्पन सौ महामुनियोंके साथ, अप्रमेयबल नामक महामुनि, जो सुमेरु पर्वतके समान अचल थे, नन्दनवनमें आकर ठहर गये। वहाँ उन महामुनिको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और इतने में जो देवता परम तीर्थकर मुनिसुत्रतनाथके केवलज्ञान कल्याणकमें वन्दना भक्तिके लिए धन, सुवर्ण, रन और स्त्रियोंसे भरपूर, अत्यन्त सुन्दर रत्नपुरनगर गये थे, वे भी सैकड़ोंकी संख्यामें यहाँ पहुँचे । एक ओर राम अपने साधनोंके साथ आया, और दूसरी ओर इन्द्रजीत और मेघवाहन भी आये। समी लोगोंने धन्दनाभक्ति की, और तब उन लोगोंमें बातचीत होने लगी। उन्होंने पूछा, 'हे देव, आपका इस प्रकार यहाँ आना, केवलमानकी उत्पत्ति होना, देवताओंका यह आगमन, ( ये तीनों चीजें) यदि कल हो सका होता तो क्या रावपा मरता १॥१-२॥